पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/९३

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स्वगायकुसुम । (सत्ताईसों मगर नहीं: इस कोठरी मे चारों और चार दाती है। इनमें से एक यह दर्वाजा तो उत्तर की ओर हई है, जिधर से अभी हमलोग इस कोठरी में पहुंचे हैं बाकी के तीन दाजो तीन तरफ है। अच्छा अन्य इस दर्वात को मैं बन्द कर दूं!" यों कहकर मरासिह ने उस कोठरी के बीचो बीच एक पटिया पर जोर से लात मारी, जिससे एक हलके तड़ाके की आवाज के साथ हम्मामवाली पदिया और उत्तर-ओर-वाले दाजे की पटिया खट्ट से बन्द होगई और तब यह नहीं जान पड़ता था कि यहा कहीं पर कोई दक्षिा भी है! भैरोसिंह ने कहा, "हां, यह वात मैं कह चुका हूं कि इस कोठरी मे चारो ओर चार दवाओं है, जिनमें से एक दाज से तो हमलोग इस कोठरी में आए ही हैं, बाकी तीन और एक एक दाजे और है । इनमें से सामने, अर्थात् दक्खिन मोर वाले दर्वाज से होकर आपके महल, अर्थात् सोनेवाले कमरे तक भीतर ही भीतर रह गई है। इसके अलावे अगलगल जो दो दर्वाज हैं, उनमे से दाहिनी ओर चाले दान से इस बाग के कंप के भीतर सुरग गई है और बाई और वाले हर्वाजे ले गांगी नदी के किनारे एक टीले पर बनी हुई एक नकली कत्र तक!" ये सब हाल सुनकर कुसुमकुमारी और बसन्तकुमार के आनन्द, आश्चर्य और कौतुक का वारापार म रहा ! कुसुमकुमारी ने कहा,-"तो पहिले कुएं के ओर चाले दाज को मोलो" यह सुन और "बहुत खब" कहकर भैरोसिंह ने पूरब ओर वाली दीवार के बीचोबीच जोर से एक बूंसा मारा, जिससे वहांकी एक छोटी सी एटिया भातर की ओर धंस गई और उसकी कास में एक गोल छेद नजर आया ! उसा छेद में उसी ताली को डालकर भैरोसिंह ने कल दवाई, जिलसे एक तडाशे की आवाज़ के साथ वहाकी पटिया हट गई और एक आदमी के घुसने लायक राह बन गई तमामयत्ता हाथ में लिये, रोशनी दिखन्दाता हुआ भैरोसिंह आगे आगे चला और कुसुमकुमारी तथा बसन्तकुमार उसके पीछे पीछे। बीस कदम सीधे चलने पर एक सीढियों का सिलसिला नजर आया जिसको तय करत हुए तानो आदमी नाचे उतरन लगे।