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इस छोटे से यूएसबी में 19,000 भारतीय मानक हैं।
 


आड़े आती है। और बीआईएस को इससे पैसों कमाने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें ज्यादातर पैसे अन्य जगहों से प्राप्त होते हैं।


अब, पूरी दुनिया में, निजी गैर सरकारी संगठन ने मानकों को विकसित किया है और फिर सरकार ने उन्हें कानूनी रूप देती है। मैं कुछ बातें बताता हूँ। गैर सरकारी संगठन इन्हें कानून बनाना चाहते हैं। यह संयुक्त राज्य अमेरिका के नेशनल इलैक्ट्रकिल कोड का संपूर्ण उद्देश्य है। वे इन्हें सभी 50 राज्यों और संघीय सरकार में इसे कानून के रूप में लागू करा चुके हैं। उन्हें इसकी आवश्यकता है। वे इन्हें काफी पैसों में बेचते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनके पास इसके अलावे, प्रमाण पत्र कार्य, प्रस्तुतिका (हैंडबुक) और प्रशिक्षण का काम है। जब संघीय सरकार कहती है कि नेशनल इलैक्ट्रिकल कोड जमीनी कानून है, तो उन्हें अमेरिकी लोगों से स्वीकृति की मुहर मिलती है और वे सार्वजनिक सुरक्षा की जानकारी को बेचे बिना, उस सोने की मुहर से पैसे बनाने में सक्षम हैं। वे दावा करते हैं कि उन्हें पैसे की आवश्यकता है लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता है कि यह मुख्य कारण है। मुझे लगता है कि यह नियंत्रण (कंट्रोल) का मामला है।


मुझे ऐसा लगता है कि वे हमेशा इसी तरह काम करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इंटरनेट ने दुनिया में प्रत्येक उद्योग को अपना कारोबार के स्वरूप को बदलने / अनुकूल करने के लिए विवश कर दिया है। समय के साथ हम अपने कारोबार को अनुकूल करते रहते हैं। वर्ष 1970 में मानकों को एक कीमत पर बेचना समझदारी भरा काम था। इस दिन और इस युग में भी बिल्डिंग कोड, पुस्तक को 14,000 रूपये में बेचा जाता है। यह छोटी सी यू.एस.बी. में सभी 19,000 मानक हैं। यह पूरा मानक है। इसका कोई कारण नहीं है कि भारत में इसे प्रत्येक विद्यार्थी के लिए कम से कम अवाणिज्यिक (नान कमर्शियल) रूप में उपलब्ध नहीं कराना चाहिए। लेकिन मुझे लगता है कि यह प्रत्येक उद्योग और प्रत्येक स्थानीय अधिकारी के लिए उपलब्ध होना चाहिए क्योंकि इससे हम सार्वजनिक सुरक्षा पर बल देते हैं। हर एक व्यक्ति कानून जानता है।


[अनुज श्रीनिवास] सही बात है कार्ल, लेकिन बात केवल जानकारी को लोगों तक निशुल्क पहुंचना ही नहीं है, बल्कि इस जानकारी की पहुंच की गुणवत्ता भी बढ़ाना है। उदाहरण के लिए, आप आवश्यक दस्तावेजों के बारे में जानते हैं - आपको उस पर गौर करने की आवश्यकता है या इसके प्रारूप को अधिक सौंदर्यपरक रूप से तैयार करने की आवश्यकता है, ताकि लोग इसका उपयोग अनुसंधान के लिए कर सकें। आपके कुछ इस तरह के काम, बढ़ कर डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया से संबंधित हो गये हैं, और वे काम जो आप पिछले दो साल से कर रहे हैं, क्या आप इसके बारे में कुछ जानकारी दे सकते हैं?


[कार्ल मालामुद] हाँ, मानकों के लिए, हम उनमें से कई बिल्डिंग कोड समेत अधिकांश को एच.टी.एम.एल. में फिर से लिखा है। हमने डायग्राम को फिर से बनाया है और फॉर्मूले को फिर से कोड किया है। द डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया दावा करती है कि सरकारी सर्वर पर 5,50,000 पुस्तके थीं। भारत वर्ष में, लम्बे समय से पुस्तकें स्कैन हो रही हैं।


[अनंत श्रीनिवास] और वे कौन-कौन सी हैं?

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