हमने इसे विभिन्न तरीके से उपलब्ध कराया है। आप इन्हें असानी से ढूंढ़ सकते हैं। लोग हमें असानी से नोटिस भेज सकते हैं और कह सकते हैं, “अहा, आपने मेटाडेटा गलत भरा है।” और हम इसे ठीक करने में सक्षम हैं। हम इसे बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार ने कहा, “नहीं, नहीं, नहीं, आपको इसे हटाना होगा, और हम आपको बताएंगे कि कौन सी किताबें रखनी सही है, क्यों कि हम इसे एक एक करके निरीक्षण करेंगे कि किस पर कॉपीराइट है और किस पर नहीं।”
सबसे पहले मैं इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं हूं, लेकिन मुझे विश्वास है वे इसके विशेषज्ञ है कि किस पर कॉपीराइट है और किस पर नहीं; पर कॉपीराइट कोई बाइनरी चीज नहीं है। यदि आप दृष्टिबाधित हैं, तो एक अंतरराष्ट्रीय संधि के तहत, किसी भी पुस्तक तक आप अपनी पहुंच बना सकते हैं। भारतीय कॉपीराइट अधिनियम के अधीन, यदि इसका प्रयोग शिक्षक और विद्यार्थी के बीच शैक्षिक उद्देश्य के लिए किया जा रहा है तो वह वैध है - इसी से संबंधित दिल्ली विश्वविद्यालय का मामला था। इसलिए यह कोई बाइनरी चीज नहीं है। मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं सोचता हूं कि यह सरकार का काम है कि वह हमें यह बताए कि कौन सी चीज पढ़ने योग्य है और कौन सी नहीं, और उसी प्रकार न ही यह उनका काम है कि वे मुझे बतायें कि कौन सी पुस्तक इंटरनेट पर डालनी है और कौन सी नहीं।
[अनुज श्रीनिवास] हां, यह सही बात है।
[कार्ल मालामुद] जब तक इससे कोई राष्ट्रीय सुरक्षा या उसी की तरह कोई मुद्दा सामने न आए, तो अलग बात है, लेकिन यदि ऐसा नहीं है और आप सिर्फ यह कहें कि, “हमें पसंद नहीं है।” तो हमारा कहना ऐसा होगा, “हमें खेद है, मैं आपकी बातों को मानने से इनकार करता हूँ।”
[अनुज श्रीनिवास] सही बात है। अब हम ऐसी स्थिति में हैं, जहां सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने अपने इस पुस्तकालय को इंटरनेट पर बंद कर दिया है और केवल आपका ही संस्करण है जो लोगों को जानकारी प्रदान कर रहा है।
[कार्ल मालामुद] हां, जो उचित बात नहीं है। सरकार के साथ यह लड़ाई लड़ने के बजाय मुझे अच्छा लगेगा कि हम डेटाबेस को बेहतर बनाए, जिसके लिए मैं उनके साथ काम कर रहा था, जहां हम अधिक पुस्तकें स्कैन कर रहे थे। हम वही कर रहे थे, जो हम अपने ‘हिंद स्वराज संग्रह' के लिए करते हैं, जो बहुत ही उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री है। क्या मैं आपको इसके बारे में बता सकता हूँ?
[अनुज श्रीनिवास] हाँ, ज़रूर।
[कार्ल मालामुद] 'हिंद स्वराज संग्रह' के काम की शुरूआत महात्मा गांधी के संकलित लेखों से हुई। यह ऑनलाइन उपलब्ध है, इसे कोई भी व्यक्ति पढ़ सकता है। आप इसकी पी.डी.एफ. फाइल और ई-बुक संस्करण डाउनलोड कर सकते हैं। मुझे भारत वर्ष में, आकाशवाणी से प्रसारित 129 रेडियो प्रोग्राम मिले हैं, जो महात्मा गांधी के अंतिम वर्षों में, उनसे प्रत्येक एक-दो दिन पर बात की गई थी। आप उनके जीवन के अंतिम वर्षों के बारे में
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