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कोड स्वराज

से ज्ञान पाने के लिए भी यही प्रस्ताव रखूगा। एक जानकार नागरिक का कार्यशील लोकतंत्र में मुख्य योगदान होता है।

वैज्ञानिक सूचना सभी लोगों को प्रदान करने के बजाय, मैं 2 करोड़ भारतीय विद्यार्थियों को वह सूचना, एक बार में उपलब्ध कराने में खुश रहूँगा। यह महत्वपूर्ण बिंदू बन सकता है: । ज्ञान की पहुंच द्विगुणी (बायनरी) समस्या नहीं है। यद्यपि यहाँ निजी संपत्ति के अधिकार का मामला है, लेकिन हम इस अधिकार को ज्ञान के रास्ते में अनुचित बाधा बनने नहीं दे सकते हैं जब विद्याथी अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने में प्रयासरत है। शिक्षा के लिए बाधा उत्पन्न करना अनैतिक है और शायद उन बाधाओं को दूर करने का यही अवसर है।

मुझे इस डेटा का भारत में प्रयोग करने और उसे भारतीय विद्यार्थी तक पहुंचाने की उम्मीद है। मैं इस बारे में आश्वस्त नहीं हूँ कि मुझमें इस कार्य को कर पाने का साहस है। क्या भारत के विश्वविद्यालय को इतना साहस है कि मुझे अपने परिसर में इस बात के लिये आने की अनुमति दें। मुझे नहीं पता कि इस बात पर लालची प्रकाशक कैसी प्रतिक्रिया देंगे। लेकिन मेरा यह मानना है कि यह गतिविधि भारत के कानून के अन्तर्गत आता है। और यदि उस सूचना को उपलब्ध कराने के लिए ज्ञान-सत्याग्रह ही एकमात्र रास्ता है तो फिर इसे करना ही चाहिए।

सूचना का लोकतांत्रिकरण

दसवां क्षेत्र है सूचना का लोकतांत्रिकरण करना। यह मेरा कार्यक्षेत्र है, शायद यह सबसे महत्वपूर्ण है। मेरा व्यक्तिगत ध्यान उन बड़े डेटाबेस को खोजना और फिर उन्हें सार्वजनिक करना हैं जिन्हें पब्लिक फंड से, यानि ज्यादातर सरकारी फंड से, बनाया गया हो। यह एक उपर से नीचे (टॉप-डाउन) जाने का उद्यम है, जो अक्सर भारत या अमेरिका में राष्ट्रीय सरकार के स्तर पर ही काम करता है। मैं उन चीजों की तलाश करता हूँ, जो पहले से मौजूद हैं, और उन्हें लोगों तक उपलब्ध कराने की कोशिश करता हूँ।

लेकिन ज्ञान उपर से नीचे (टाप-डाउन) नहीं बहता है। ज्ञान लोगों से शुरू होता है। वर्ष 2016 में, अपनी यात्रा के दौरान जब मैं बंकर रॉय से मिला तो मुझे इसका आभास हुआ। सैम को संभ्रांत मेयो कॉलेज में व्याख्यान देना था और उसके बाद अगली सबह हुम बेयरफुट कॉलेज में सैम के पुराने दोस्त बंकर से मिलने गए। उसके बाद सैम को सैंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान के चांसलर की तरह, दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करनी थी।

बेयरफुट कॉलेज अद्भुत जगह है। बंकर ने वर्ष 1972 में इसकी स्थापना की थी। वर्तमान में राजस्थान के मध्य में तिलोनिया गांव के समीप इसका बड़ा परिसर है। उनका उल्लेखित काम है सौर लालटेन का। वे दुनिया भर के गांवों से महिलाओं को लाए और उन्हें सौर लालटेन बनाने के और उसके रखरखाव के तरीकों को सिखाते हैं। वे लोग सोल्डर करना, स्कैमैटिक्स डायग्राम पढ़ना और दूसरों को प्रशिक्षित करना सीखते हैं। ये महिलाएं अपने घर वापस जाती हैं और अपने गांव में रोशनी फैलाने का काम करती हैं। इससे विद्यार्थियों और वयस्कों को अंधेरा होने के बाद भी पढ़ने की सुविधा मिलती है। सौर ऊर्जा का उपयोग कई अन्य कार्यों के लिए भी किया जाता है, जैसे कि सेल फोन को चार्ज करने के लिए।

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