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कोड स्वराज

चित्रण वियतनाम युद्ध के दौरान किया गया था। उसने महान विज्ञानिक आइंस्टीन को खत लिखा और पूछा कि उसे क्या करना चाहिये। आइंस्टीन ने उसके खत का जबाव यह क हुए दिया कि "गांधी की तरह काम करो (Do like Gandhi)"

लड़का परेशान था और उसने आइंस्टीन को दोबारा खत लिखा और पूछा कि इसका क्या मतलब है। आइंस्टीन ने जवाब दिया, "कानून की अवमानना करो (disobey the law)"। वह लड़का तीन साल के लिए जेल गया। उस लड़के का नाम ज़ीन शार्प (Gene Sharp) था,जो अहिंसा के प्रमुख प्रचारकों में से एक था, और जिसके काम ने पूरे विश्व में शांतिपूर्ण क्रांतिओं को प्रभावित किया है।

बातचीत धीरे-धीरे आगे बढ़ी। मैंने कुछ नोट लिखें, तस्वीरें लीं और कुछ खास संक्षिप्त बिंदुओं को ट्वीट करने की कोशिश की, ताकि दुनिया के लोगों की इस कार्यवाही का पता चल सके। मैं इस बात से भी परेशान था कि मैं क्या बोलूंगा, मेरे हाथों में अस्पष्ट लिखावट में लिखे नोट्स थे और मैं उन प्रतिष्ठित इतिहासकारों को देखकर ढ़ाढस बंधा रहा था जिनकी पुस्तकों को मैंने उनके समक्ष घबराते हुए प्रशंसा की थी।

सुषमा अय्यंगार जिन्होंने गुजरात राज्य में ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने, महिलाओं के प्रति हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए एक सक्रिय संगठन का निर्माण किया है। उन्होने महिलाओं के प्रति हिंसा के बारे में बात करते हुए यह कहा कि हम किसी हिंसा पर चुप्पी रख कर, उस हिंसा को न्यायसंगत बना देते हैं। उन्होंने कहा कि हमें हिंसा के कारणों का वर्गीकरण करना होगा, जिनमें हिंसा के कुछ रूप, अन्य तरह के हिंसा के बजाय अधिक गंभीर बन जाते हैं। प्रायः हमलोग यौन उत्पीड़न को, और यहाँ तक कि बलात्कार को भी न्यायसंगत बना देते हैं। लेकिन जब कोई महिला उसके खिलाफ आवाज़ उठाती है तो हम उस पर ही उंगली उठाते हैं, उसके ही आवाज को न्याय असंगत कहते हैं और उसे ही अपराधी करार कर देते हैं।

गांधीजी, हिंसा के खिलाफ की गई हिंसा की प्रतिक्रिया के आलोचक थे। ब्रिटिश राज की ज़बर्दस्त क्रूरता और अत्याचार के बावजूद, और शासन द्वारा अपने ही लोगों के खिलाफ स्थापित हिंसक ढांचे होने के बावजूद, वे सन् 1857 के विद्रोह के आलोचक थे। जब भीषण कलकत्ता हत्याकांड में, और वर्ष 1946 के बिहार में दंगा फैलने के बाद, जब लोगों ने एक-दूसरों को मारना-काटना शुरू कर दिया तो गांधीजी ने तब तक अनशन जारी रक्खा जब तक लोगों ने हिंसा को रोका नहीं। यदि वे हिंसा नहीं रोकते तो वे अपने अंतिम सांस तक अनशन करने के लिए तैयार थे।

"द अफ्रिकन एलिमेंट इन गांधी The Africn Element in candhi)," के लेखक अनिल नौरिया ने दक्षिण अफ्रीका के कनटेक्स्ट में, हिंसा के इस ढांचा के बारे में लिखा है। रंगभेद का तंत्र, संपूर्ण नस्ल के खिलाफ क्रूर हिंसा के विरोध में, मंडेला जैसे नेताओं ने जनशक्ति को सक्षम बना कर, दमन बल को, अपने बल से टक्कर देने का निर्णय लिया था। हालाँ कि मंडेला अफ्रीका में अन्य नेताओं की भांति गांधी जी के अनुयायी थे।

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