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कोड स्वराज

इसका दूसरा सिद्धांत यह है कि विधि को सार्वजनिक करना चाहिए। ऐसी दुनिया में जहां पर 'कानन की अज्ञानता' क्षम्य नहीं है ऐसे में ये सिद्धांत स्पष्ट और आसान लगते हैं लेकिन मैंने । अपने अनुभव से यह सीखा है कि विधि के सार्वजनिककरण का अक्सर उल्लघंन किया जाता है।

विधि लिखने, और फिर उसे प्रकाशित करने के, ये दो सिद्धांत अनिवार्य तो हैं, लेकिन पर्याप्त नहीं है। हमारे पास ऐसा कानून हो सकता है, जिसमें यह कहा गया हो कि काले रंग के लोग, अमेरिकी दक्षिण में सफेद लोगों के लंच काउंटर पर खाना नहीं खा सकते हैं। हम इसे व्यापक रूप से प्रसारित कर सकते हैं ताकि ये दोनो सिद्धांतों की पूर्णतः तुष्टि हो जाय। लेकिन यह केवल विधि का नियम हुआ, विधि का शासन नहीं है।

तीसरा सिद्धांत यह है कि कानून सामान्य होंगे, वे केवल किसी विशेष व्यक्ति या समूह पर लागू नहीं होंगे। यह कहना कि “भारतीयों और एशियाई मूल के लोग को खुद को पंजीकृत करना होगा, और एक पाउंड पंजीकरण कर देना होगा, और हमेशा अपना पंजीकरण पत्र रखना होगा”, 'कानून का राज' का मूलतः उलंघन है, और इसी के खिलाफ गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह की लड़ाई लड़े थे।

यह स्पष्ट है कि हमारी आधनिक दुनिया में अभी भी हिंसा मौजद है जिसके विरुद्ध हमें संघर्ष करना होगा, वह हिंसा जिसके बारे में सैम ने बताया था, राज्य की हिंसा, अतिकवाद की हिंसा, अपने पड़ोसी और परिवार के सदस्यों के खिलाफ, लोगों की हिंसा। लेकिन इन शारीरिक हिंसा से परे भी अनेक तरह की हिंसाएं हैं। ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण के द्वारा हमारे ग्रह पर की जाने वाली शर्मनाक हिंसा है। बीमारियों की हिंसा, पानी की कमी की हिंसा, और उपज आधिक्य के बीच अकाल की हिंसा, भी हमारे बीच हो रही है।

'कानून का राज' के अनुसार, कानून सभी पर समान रूप से लागू होगा, लेकिन वर्तमान समय में ऐसा नहीं है। हमें इसे ठीक करना होगा, लेकिन हमें इससे अधिक और भी काम करने की आवश्यकता है। हमें लोगों के बीच आर्थिक अवसर, और राजनीतिक अवसर की समानता लाने की आवश्यकता है। हमारी सरकारें कैसे काम करती हैं केवल इन्हें बदलकर, और दनिया को नया रूप देने की कोशिश कर, हम उन समस्याओं के समाधान की शुरुआत कर सकेगें जिनका हम आज सामना कर रहे हैं।

इंटरनेट की हमारी इस दुनिया में, हमें एक और मुद्दे को भी संबोधित करना होगा, और यह है ‘ज्ञान तक पहुंचने की समानता' का है। इंटरनेट के प्रमुख वादे के बावजूद, हमने अधिकांशतः ज्ञान को अलग कर एक घिरे वाटिका में छुपा कर रख लिया जहाँ हमें निजी पार्टियों से लाइसेंस लेने की आवश्यकता होती है और तब जाकर हम खुद को उस ज्ञान से शिक्षित कर सकते हैं। ‘ज्ञान तक सार्वभौमिक पहुंच’ हमारे समय की प्रमुख प्रतिज्ञा है। इस तरह की समानता लाना हमारी पीढ़ी के लिए एक भव्य चुनौती है। यह हमारा लिए एक मौका है जो हम भविष्य के लिये विरासत में छोड़ सकते हैं। हम उस स्तर के लोग बन सकते हैं जो नींव रखते हैं, इसलिए हमें उन सभी प्रश्नों में भाग लेना है जो हमें यह प्रेरित करता है कि हम लोकतांत्रिक तरीके से खुद को कैसे प्रशासित करें।

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