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डिजिटल युग में सत्याग्रह

हमारा काम उन पेपरों को खरीद कर उन्हें कॉपी और स्कैन करने तक सीमित नहीं रहा। हुमने कई प्रमुख दस्तावेज़ों का पुनर्लेखन किया। उन्हें आधुनिक वेब पेजों में डाला। आकृतियों को पुनः बनाया। पाठ का मुद्रण (टाइपोग्राफी) आधुनिक तरीके से किया। हमने इन कोडों का मानकीकरण किया जिससे दृष्टिहीन लोग इन दस्तावेज़ों पर आसानी से कार्य कर सकें। हमने इन कोडों को ईबुक के रूप में उपलब्ध कराया। ऐसी सुविधा दी कि । पूरे पाठ को सर्च किया जा सके। हमने बुकमाक्र्स दिये एवं वेब साइट को सुरक्षित भी किये।

अमेरिका और भारत की सरकारें इससे खुश नहीं हैं।

अधिकारीगण खुश नहीं है। अमेरिका में हमारे ऊपर छह अभियोगों के साथ मुकदमा चलाया गया है। कानून बताने के अधिकार के लिए हमारा मामला अमेरिका के कोर्ट ऑफ अपील्सू में पेश है। भारत में ब्यूरो ने, हमें अन्य कोई दस्तावेज बेचने से इनकार कर दिया है। मंत्रालय में रिलीफ' की याचिका को खारिज कर दिया गया है। फिर हमने भारत में अपने सहयोगियों के साथ मिलकर एक जनहित याचिका दायर कीं, जो वर्तमान समय में माननीय उच्च न्यायालय दिल्ली में दर्ज है। हमारे वकील निःशुल्क अपना समय देते हैं। वे निःस्वार्थ कार्य करते हैं यानि कि इस कार्य के लिए रूपये नहीं लेते हैं। बल्कि उन्होंने हमारे कार्य का समर्थन करते हुए कानूनी सेवा (Self-Employed Women 's Association of India) शुल्क के रूप में करीब 1 करोड़ डॉलर से अधिक की निःशुल्क कानूनी मदद की है।

हम न्यायालय से न्याय मांग रहे हैं साथ ही प्रत्येक वर्ष इन दस्तावेजों को इंटरनेट पर लाखों दर्शकों के लिए उपलब्ध कराने का काम भी कर रहे हैं। भारतीय मानक भारत के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों में विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। यहाँ के छात्र और प्रोफेसर खुश हैं कि उनकी शिक्षा के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण मानक आसानी से मुफ्त मिल सकते हैं।

प्रत्येक पीढ़ी को अवसर प्राप्त होता है। वास्तव में इंटरनेट ने विश्व को अदभुत अवसर प्रदान किया है। इसके जरिए प्रत्येक व्यक्ति सार्वभौमिक रूप से ज्ञान प्राप्त कर सकता है। मैं बड़े लोकतंत्र के कानून, सरकार के अध्यादेशों तक लोगों की पहुंच बनाने पर ध्यान केंद्रित करता हूँ। परंतु यह एक वृहत कार्य का केवल एक सूक्ष्म भाग है।

हमारी सोच ऊंची होनी चाहिए। आधुनिक दुनिया में, विद्वानों के साहित्य, तकनीकी दस्तावेजों, कानून या ज्ञान के अन्य भंडारों तक पहुंचने की प्रक्रिया को प्रतिबंधित करने का कोई बहाना नहीं है। जैसा कि भर्तृहरि ने नीतिशतकम् में लिखा है, “ज्ञान एक ऐसा खज़ाना है। जिसे चुराया नहीं जा सकता।” ज्ञान, बिना किसी शुल्क के सभी के लिए मुफ्त उपलब्ध होना चाहिए।

ज्ञान और कानून तक की पहुंच को सार्वभौमिक बना कर, शायद हम संसार की उन बाधाओं को दूर कर सकते हैं जिन्हें हम आज देख रहे हैं। लेकिन यह तभी संभव है जब हम सामाजिक कार्य करें जिसकी चर्चा गांधी जी अक्सर किया करते थे। और यह तभी होगा जब हम विशिष्ट लक्ष्यों पर लगातार और व्यवस्थित रूप से ध्यान केंद्रित करते रहेंगे।

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