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सूचना का अधिकार, ज्ञान का अधिकार:डॉ.सैम पित्रोदा की टिप्पणियां

(सार्वजनिक भाषणः अतिथि ज्ञान द्वारा), न्यूमा (NUMA) बेंगलुरु, 15 अक्टूबर, 2017

नमस्कार दोस्तों! मेरे लिए आपसे मिलना काफी गौरव की बात है।

मुझे मालूम नहीं था कि मैं किस चीज से जुड़ने जा रहा था। जब मैं यहाँ आया, तो कार्ल ने मुझे बताया कि आज दोपहर में हमारी एक बैठक है। उन्होंने मुझे कल ही बताया कि हम क्या करने जा रहे हैं, इसलिए मैं यहाँ न्यूमा (NUMA) आया और उनसे पूछा, “क्या तुम ठीक से जान रहे हो कि हम सही जगह पर आए हैं?”

लेकिन, मैं आप सभी को देखकर बहुत प्रसन्न हूँ। आज भारत में युवा वर्ग जो कर रहा है उसे देखकर मुझे आश्चर्य होता है। मुझे आप पर बहुत गर्व है। मैं एक ऐसे व्यक्ति से मिला हूँ जो आदिवासी लोगों पर काम कर रहे हैं। मैं ऐसे एक अन्य व्यक्ति से मिला जो कानन पर काम कर रहे हैं। मैं आप जैसे कई लोगों से मिला हूँ, जो वास्तव में नए भारत के निर्माण में बहुत रुचि ले रहे हैं।

जब मैं आप जैसे कुछ लोगों से मिलता हैं, तब मैं भारत के भविष्य के बारे में बहुत उत्साहित हो जाता हूं। मेरा जन्म 1942 में हुआ था। आज में 75 वर्ष का हो गया हूं। वे दिन स्वतंत्र भारत के शुरुआती दिन थे।

जैसे-जैसे हम बड़े हुए, हमारे लिये गांधी, नेहरू, पटेल, कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस जैसे लोग, असली आदर्श व्यक्ति थे। हम गांधी के आदर्शों के साथ बड़े हुए हैं और हमें, मिल-जुलकर रहने, सत्य, विश्वास, आत्म-निर्भरता, सरलता, बलिदान और साहस की शिक्षा दी गई थी।

बचपन में हमारे लिए इन शब्दों का बहुत महत्व था। मेरे पिताजी अनपढ़ थे। लेकिन हमारे घर में पांच बड़ी तस्वीरें थी। ये बड़ी तस्वीरें इन पांच नेताओं की थी। स्कूल-कॉलेज जाने के दिनों में, भारत के बारे में उनलोगों के विचार प्रमुख रूप से हमारे ध्यान में रहते थे।

मैं, वर्ष 1964 में संयुक्त राज्य अमरीका चला गया था और मैंने उन 60 के दशक में जो कुछ वहाँ सीखा उससे मुझे यह महसूस हुआ कि भारत में तीन मूल मुद्दे हैः असमानता, जनसांख्यिकी, और विकास। मैंने यह भी महसूस किया कि इन समस्याओं का समाधान करने के लिए, पहली जो सबसे बड़ी आवश्यकता है वह है आपसी संपर्क के साधनों की।

वर्ष 1979 में, मैं दिल्ली आया और यहाँ से, शिकागो में रह रही अपनी पत्नी के साथ टेलिफोन पर बात नहीं कर सका। उस समय मैं, एक पांच सितारा होटल में ठहरा हुआ था।

इसलिए मैं कुछ नाराजगी और अंजाने में कहा कि “मैं इस टेलिफोन सिस्टम को दुरुस्त करने जा रहा हूं।” फिर मैंने, भारत में टेलिफोन लगाने के प्रयास में, अपने जीवन के 10 वर्ष व्यतीत किए।

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