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कोविद-कीर्तन


चाहते। उनकी शिकायत है कि उन्हे समय नही---अवकाश नही। जो लोग सरकारी मुलाज़िम हैं उनकी समय-सम्बन्धी शिकायत की तो कुछ पूछिए ही नही। औरों की हम नही कह सकते, पर जो लोग शिक्षा विभाग मे कर्मचारी हैं क्या उनको भी समय नहीं मिलता? जी हाँ, उन्हें भी समय नहीं मिलता। वे भी सरकारी काम की चक्की मे पीसे जाते हैं। कहते तो वे यही हैं। आर० सी० दत्त को कलेक्टरी और कमिश्नरी का काम करके किताबें लिखने के लिए समय मिल जाता था। बङ्किम बाबू को डिपुटी मैजिस्ट्रेटी करके भी साहित्य-सेवा के लिए समय मिलता था। विन्सेंट स्मिथ, ग्रियर्सन, ड्यू हस्र्ट आदि बड़े-बड़े अँगरेज-कर्मचारियों को भी समयाभाव की शिकायत नही करनी पड़ी। उनके अनेक बड़े-बड़े ग्रन्थ इसका साक्ष्य दे रहे हैं। परन्तु हमारे स्कूलो और कालेजों के अध्यापकों और शिक्षाविभाग के अन्यान्य कर्मचारियो को एक मिनट की भी फुरसत नही। अपने मद्दाह मुदर्रिसों और मातहतों से घिरे आप घण्टों बैठे फिजूल बातें किया करेगे, पर हिन्दी लिखने के लिए आपको कभी समय नहीं मिलता। कालेजों के संस्कृत-प्रोफेसरों को बहुत ही कम काम पड़ता है, परन्तु बेचारी हिन्दी पर उन्हे भी दया नही आती। उनमे से कुछ महाशय यह उज्र पेश करते हैं कि हिन्दी हमारी मातृभाषा नही। अच्छा तो आप अपनी मातृभापा ही मे कुछ लिख डालने की कृपा करते। सो भी तो आपने नही