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कोविद-कीर्तन


उन्होंने अपना एक स्वतन्त्र पत्र निकालने का सड्क्ल्प किया। यह सड्क्ल्प उन्होंने बहुत जल्द कार्य मे परिणत कर दिखाया।

सन् १८७८ ईसवी के फरवरी महीने से इच्छारामजी 'स्वतन्त्रता' नाम की मासिक पत्रिका निकालने लगे। यह पत्रिका बम्बई से नहीं, सूरत से, निकली। इसमे कभी-कभी बड़े कड़े लेख प्रकाशित होते थे। इसके दूसरे ही अङ्क में लार्ड लिटन की गवर्नमेट द्वारा लगाये हुए 'लाइसेन्स टैक्स' नामक कर के विषय में एक बड़ा ही तीव्र-समालोचनात्मक लेख छपा। दुर्भाग्य से उसी समय सूरत में बलवा हो गया। अधिकारियों ने समझा कि इस लेख ही के कारण यह बलवा हुआ है। अतएव बेचारे इच्छाराम, अपने सात साथियों समेत, राज-विद्रोह के अपराध में गिरफ्तार किये गये। सौभाग्य से बलवेवाले दिन वे बम्बई मे थे। इसलिए पकड़े जाने के बाद ही वे तुरन्त जमानत पर छोड़ दिये गये। परन्तु एक को छोड़कर उनके अन्य साथी न छोड़े गये। अतएव इच्छाराम उनकी पैरवी करने लगे। इस पर सरकारी आज्ञा से वे दुबारा गिरफ़्तार किये गये। उनका मुकद्दमा कोई छः महीने तक चलता रहा। उन्होने बम्बई के विख्यात वारिस्टर सर फीरोज़शाह मेहता को अपना वकील बनाया। कहते हैं कि मेहता महाशय ने इस मुकद्दमे की पैरवी खूब जी-जान लड़ाकर की। इससे उनकी कानूनी योग्यता की धाक बैठ गई और केवल बम्बई प्रान्त हो में नहीं, किन्तु सारे भारत मे उनका