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इच्छाराम सूर्यराम देसाई


नाम हो गया। अस्तु। अन्त मे सत्य की जीत हुई। अपने साथियों सहित इच्छाराम, निर्दोपी प्रमाणित होकर, छूट गये। परन्तु इस मुकद्दमे मे ख़र्च वहुत अधिक पड़ा । इच्छाराम तथा अन्य अभियुक्तो के सब मिलाकर कोई पचासी हज़ार रुपये खर्च हो गये। कुछ भी हो, इस घटना से सर्व-साधारण को यह निश्चय हो गया कि देसाई महाशय कितने दृढ़-प्रतिज्ञ तथा धुन के कितने पक्के हैं और उनमे साहस तथा निर्भीकता कहाँ तक भरी हुई है।

मुकद्दमे से छुट्टी पाते ही इच्छाराम ने 'गुजरात-मित्र' तथा 'देशी मित्र' नामक पत्रो का सम्पादन स्वीकार किया। यह काम वे कोई छः महीने तक करते रहे। इसके बाद, सन् १८८० ईसवी मे, उन्होने बम्बई के विख्यात करोड-पति, सर मङ्गलदास नाथूभाई, की सहायता से 'गुजराती' नामक समाचारपत्र निकाला। इस पत्र ने थोड़े ही दिनो में अच्छी उन्नति की। इसकी ग्राहक संख्या भी खूब बढ़ी। गुजराती भाषा के बड़े-बड़े प्रसिद्ध कवि और लेखक इसमे लिखने लगे। सन् १८८९ ईसवी मे इस पत्र मे कुछ पृष्ठ और बढ़ाये गये और उनमे अँगरेज़ी भाषा के लेख रहने लगे। तब से लेकर आज तक यह उसी एङ्गलो-गुजराती रूप मे बराबर निकल रहा है। गत सन् १९०४ ईसवी मे इस पत्र को रजत-जयन्ती, बडी धूमधाम से, मनाई गई थी। 'गुजराती' अपनी भाषा के प्रतिष्ठित तथा उच्च श्रेणी के पत्रों मे समझा जाता है और