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इच्छाराम सूर्यराम देसाई


साधु-महात्माओं के साथ ज्ञानालोचना की। इसके बाद उन्होंने इस ग्रन्थ की रचना की। गुजराती-साहित्य में इस पुस्तक का दरजा बहुत ऊँचा है। अब तक इसकी हजारों प्रतियॉ बिक चुकी हैं। 'काव्यदोहन' भी देसाईजी की बहुत प्रसिद्ध पुस्तक है। शुरू से लेकर अब तक, कोई तीन सौ वर्षों मे, जितने गुजराती कवि हुए है उन सबकी अच्छी-अच्छी कविताओं का संग्रह इसमे है। यह ग्रन्थ बड़ी-बड़ी सात जिल्दों मे समाप्त हुआ है। सुप्रसिद्ध महात्मा टाड के 'राजस्थान' का भी अनुवाद उन्होंने किया। श्रीमद्भागवत, महाभारत, रामायण, कई पुराण, शुक्र-नीति, कलाविलास आदि कितने ही संस्कृत-ग्रन्थों के गद्यपद्यानुवाद भी इच्छाराम महाशय ने किये। इनके सिवा और भी बहुत सी लौकिक तथा धार्मिक पुस्तकों की रचना उन्होंने की। देसाईजी की पुस्तकें बम्बई प्रान्त मे खूब प्रसिद्ध हैं और सब कही बड़े चाव से पढ़ी जाती हैं। कहते हैं कि उनकी लिखी हुई सब मिलाकर कोई १२० पुस्तकें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी भाषा बड़ी ही ओजस्विनी और हास्यरस-पूर्ण होती थी; लोग उसे बहुत पसन्द करते थे।

श्रीयुक्त इच्छाराम बड़े ही सचरित्र और धर्मात्मा पुरुष थे। उनके धार्मिक विचार पुराने ढङ्ग के थे। हिन्दू-धर्म के वे पक्के अनुयायी थे। यदि हिन्दू-शास्त्रो या आचार-विचारों पर कोई ज़रा भी कटाक्ष करता तो वे उसे सहन न कर सकते और तुरन्त मुँहतोड़ उत्तर देते थे। सामाजिक विषयों में भी