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कोविद-कीर्तन


वे पुरानी चाल के कट्टर पक्षपाती थे। समाज-सुधारको से उनकी कभी न पटती थी। स्त्रियों को शिक्षा न देना, बाल- विवाह, अनमेल विवाह आदि कुरीतियों को यद्यपि वे भी अच्छा न समझते थे तथापि उनको दूर करने के लिए जो उपाय आजकल किये जाते हैं उनसे वे सहमत न थे। देसाईजी के राजनैतिक विचार कांग्रेस से मिलते-जुलते थे। वे न तो राजपुरुषों की बेजा खुशामद करना ही अच्छा समझते थे और न ख़्वाहमख़्वाह गवर्नमेंट से विरोध करना ही उन्हे अच्छा लगता था। जहाँ उनकी यह राय थी कि वर्तमान समय मे इस देश के लिए अँगरेज़ी गवर्नमेट की बड़ो भारी आवश्यकता है वहाँ उनका यह भी मत था कि गवर्नमेंट के अनुचित कार्यों की नेकनीयती के साथ स्वतन्त्रतापूर्वक आलोचना करना राजा और प्रजा दोनों के लिए हितकर है।

अब तक जो कुछ हमने लिखा उससे पाठक समझ गये होंगे कि श्रीयुत इच्छाराम सूर्यराम देसाई बड़े ही निडर, साहसी, दृढ़प्रतिज्ञ, स्पष्टवक्ता, परिश्रमी, सदाचारी, उदार, विद्वान् तथा धार्मिक पुरुष थे। उन्होंने अपने पत्र तथा पुस्तकों के द्वारा अपने देश की और अपनी मातृ-भाषा के साहित्य की बड़ी भारी सेवा की।

क्या कभी ऐसा भी समय आवेगा जब हिन्दी बोलनेवाले लोगो मे भी कोई 'देसाई' उत्पन्न होगा?

[ मार्च १९१३

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