पृष्ठ:कोविद-कीर्तन.djvu/१२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११६
कोविद-कीर्तन


के इजलास में, हुआ था। इसका जो फैसला बाबू साहब ने लिखा है उससे आपकी विद्वत्ता और हिन्दू धर्म-शास्त्रों के सम्बन्ध मे आपकी तत्त्वज्ञता का बहुत ही अच्छा परिचय मिलता है। यह फैसला पुस्तकाकार भी छप गया है। विलायत जाने से जाति और धर्म की हानि होती है, यह जिन लोगों का ख़याल है उन्हें इसे अवश्य ही देखना चाहिए।

इन्ही धर्मशास्त्रज्ञ, इन्ही आदर्श न्यायाधीश, इन्हीं हिन्दी-क्षिप्र-लेखन-विधि के आविष्कारक का संक्षिप्त जीवन-वृत्तान्त सुन लीजिए।

वसु महोदय के पिता का नाम था---बाबू श्यामाचरण वसु। १८४९ मे वे लाहौर गये। वहाँ अमेरिकन मिशन स्कूल के वे हेडमास्टर नियत हुए। कुछ समय बाद उन्होने यह नौकरी छोड़ दी और डाइरेक्टर आव् पबलिक इन्सट्रक्शन के दफ़्तर मे काम करने लगे। सिपाही-विद्रोह के समय वे इसी दफ़र मे हेडक्लार्क थे। उस विपत्ति-काल मे आपने ऐसी धीरता और शान्ति से काम किया कि गवर्नमेट ने आपकी बड़ी प्रशंसा की। पञ्जाब-विश्वविद्यालय की स्थापना की सलाह पहले पहल श्यामाचरण बाबू ही ने दी थी। उनकी सिफ़ारिश को बड़े महत्त्व की चीज़ समझझकर शिक्षा-विभाग के अध्यक्ष, मेजर फुलर, ने भी अपनी सम्मति विश्वविद्यालय की स्थापना के अनुकूल दी। फल यह हुआ कि पञ्जाब के छोटे लाट सर डोनल्ड म्यकलीड ने गवर्नमेट आव् इंडिया से