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राय श्रीशचन्द्र वसु बहादुर


लिखा-पढ़ी करके विश्वविद्यालय की स्थापना करा दी। पर यह काम श्यामाचरण बाबू की मृत्यु के अनन्तर हुआ। चालीस ही वर्ष की उम्र मे उनका पार्थिव शरीर पञ्चत्व को प्राप्त हो गया।

बाबू श्रीशचन्द्र का जन्म २० मार्च १८६१ को हुआ था। पिता की मृत्यु के समय उनकी उम्र केवल ६ वर्ष की थी। पितृहीन हो जाने से उनकी शिक्षा का प्रबन्ध उनकी माता ही को करना पड़ा। वसु बाबू ने लडकपन ही में तीव्र-बुद्धि होने का परिचय दिया। पन्द्रह ही वर्ष की उम्र से उन्होने नामवरी के साथ एन्ट्रन्स की परीक्षा पास की। पज्जाब मे उनका नम्बर पहला आया और कलकत्ता-यूनीवर्सिटी मे तीसरा। इस उपलक्ष्य मे आपको सोने का तमग़ा भी मिला और ५० रुपये की क़ीमत की किताबें भी मिली। पहले नम्बर का वज़ीफ़ा तो मिला ही। १८७८ मे लाहोर के गवर्नमेंट कालेज से आपने एफ़० ए० पास किया और फिर भी पज्जाब में आपका नम्बर पहला रहा। १८८१ मे, अर्थात् २० वर्ष की उम्र में, बी० ए० पास करके आप उस कालेज मे भर्ती हो गये जहाँ अध्यापन-कार्य की शिक्षा दी जाती है। एक ही वर्ष में वहाँ से भी नेकनामी के साथ पास होकर, लाहोर के ज़िला-स्कूल मे, आप सेकेड मास्टर हो गये। वही आपने क़ानून का अभ्यास किया और १८८३ के जनवरी महीने में इलाहाबाद की हाई-कोर्ट की वकालत की परीक्षा पास कर ली। इसके पहले ही वसु बाबू लाहोर के माडल स्कूल के हेडमास्टर