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कोविद-कीर्तन

श्रीश बाबू के सहोदर, मेजर वामनदास वसु, एम० डी०, फ़ौज मे सर्जन थे। आपकी विद्याभिरुचि और स्वदेशप्रीति प्रशंसनीय है। हमारे कतिपय अँगरेज़ीदाँ वकीलो और बैरिस्टरों की तरह, आप, "I.M.S" होकर भी, अपनी मातृभाषा से घृणा नही करते; उलटा उसका आदर करते हैं। आपने बंगला में पुस्तकें तक लिखी हैं। आपने अब पेन्शन ले ली है और इलाहाबाद मे रहते हैं। वहाँ आप अपने "पाणिनि-आफ़िस" से "Sacred Books of the East" नामक एक पुस्तक-मालिका, अपने भाई श्रीयुक्त श्रीशचन्द्रजी वसु की सलाह से निकालते हैं। इस मालिका से आज तक हिन्दुओ के अनेक शास्त्रीय ग्रन्थों के अनुवाद, टीका-टिप्पणी सहित, अँगरेज़ी में निकल चुके हैं और बराबर निकलते जाते है। इसमे श्रीश बाबू के किये हुए ईश, केन, कठ आदि सात-आठ उपनिषदों के अनुवाद, माधवाचार्य की विवृति के अनुवाद सहित, प्रकाशित हो चुके हैं। वेदान्त-सूत्रों और याज्ञवल्क्य-स्मृति की प्रमिताक्षरा नामक टोका के अनुवाद भी, श्रीशचन्द्र बाबू के किये हुए निकल चुके हैं।

श्रीश बाबू ने शिवसंहिता, घेरण्डसंहिता, योग-दर्शन आदि पर भी विद्वत्तापूर्ण प्रबन्ध लिखे है। आप थियासफ़िस्ट हैं। अतएव थियासफ़ी पर भी आपने दो-एक पुस्तकें लिखी हैं।

जो लोग अनेक भाषायें जानते हैं और अनेक शास्त्रों के ज्ञाता होते हैं वे ऐसी-वैसी पुस्तके नही लिखते। क़िस्से-कहानियों और हँसने-हँसानेवाली बातों से वे कोसों दूर भागते हैं।