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राय श्रीशचन्द्र बसु बहादुर


परन्तु श्रीश बाबू ऐसे विद्वान् नहीं। उन्होने "शेख़चिल्ली" की कहानियाँ अँगरेज़ी मे लिखकर यह सिद्ध कर दिया है कि यदि वे चाहें तो एक नये ही सहस्र-रजनी-चरित्र की रचना कर सकते हैं। आपकी ये कहानियाँ बड़ी ही मनोरञ्जक हैं। रिव्यू आव् रिव्यूज़ के सम्पादक, स्टीड साहब, तक ने इन्हे पढ़कर श्रीश बाबू की प्रशंसा की है। इनका अनुवाद बँगला मे भी हो गया है। इंडियन प्रेस ने भी इनका हिन्दी-अनुवाद कराकर प्रकाशित किया है। इस नोट के लेखक ने कई भिन्न भाषाओ की मासिक पुस्तकों मे, इस पुस्तक की कहानियों के चोरी से किये गये अनुवाद छपे हुए देखे हैं। एक पुस्तक के सम्पादक ने तो यहाँ तक ढिठाई की थी कि इसकी "बनिया और जाट" वाली कहानी को यह कहकर प्रकाशित किया था कि इसे उसने मदरास-प्रान्त से प्राप्त किया है। जब आपको श्रीश बाबू की पुस्तक का पता बताया गया तब आप चुप्पी साध गये।

श्रीश बाबू की योग्यता से प्रसन्न होकर गवर्नमेट ने उन्हें रायबहादुर का खिताब दिया है और इलाहाबाद-विश्वविद्यालय का फ़ेलो भी नियत किया है। मुन्सिफ़ से आप सब जज हुए थे। अब, हाल ही मे, आपको सेशन जज का पद मिला है। इस समय आप गोरखपुर की जजी का काम करते हैं। आशा है, गवर्नमेंट आपको हाई-कोर्ट का जज बनावेगी।----

रत्नं। समागच्छतु काञ्चनेन।

[ मई १९१३

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