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पण्डित परमानन्द चतुर्वेदी, बी० ए०


समय पढ़ने-लिखने का वैसा प्रचार न था जैसा आजकल है। इस कारण आपकी भी शिक्षा का प्रबन्ध न हो सका। परन्तु जो होनहार होते हैं वे स्वयं ही सब कुछ कर लेते हैं। आपने स्वयं ही तहसीली स्कूल मे विद्याभ्यास आरम्भ किया और बहुत शीघ्र वहाँ की पढ़ाई समाप्त कर डाली। बाल्यावस्था ही से पुस्तकावलोकन से आपको प्रेम था। हिन्दी और उर्दू की जितनी किताबे, जिस प्रकार, जहाँ से मिल सकी, सब आपने पढ़ डाली। जब आप तहसीलो स्कूल मे पढ़ते थे तब छपे हुए नकशे बहुत कम मिलते थे। इससे आपने हिन्दुस्तान का एक नकशा अपने ही हाथ से ऐसी उत्तमता से बनाया और उसमे ऐसे उत्तम रङ्ग भरे कि मदरसों के इन्सपेक्टर उसे देखकर दङ्ग रह गये। वह नक़शा अब तक विद्यमान है और हमने स्वयं उसे देखा है। इन्सपेक्टर साहब ने खुश होकर इस उपलक्ष्य मे आपको ३०० पुरस्कार मे दिये।

तहसीली मदरसे की पढ़ाई समाप्त हो चुकने पर आप पढ़ने का विचार छोड़ चुके थे। परन्तु आपके एक सहपाठी, जो मैनपुरी मे अँगरेजी पढ़ने चले गये थे, किसी छुट्टी मे घर आये। उनसे और आपसे परस्पर बातचीत हुई। फल यह हुआ कि आपको भी अँगरेज़ी पढ़ने की उत्तेजना मिली। आप भी मैनपुरी चले गये और अँगरेजी आरम्भ कर दी। अत्यन्त कष्ट उठाकर आठवे दरजे तक आपने वहाँ पढ़ा। फिर आप आगरे चले गये। १८७१ मे आपने कलकत्ता-