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कोविद-कीर्तन


विश्वविद्यालय की एंट्रेंस परीक्षा पास की और युक्तप्रान्त में आपका पहला नम्बर रहा। इसलिए आपको ५) वज़ीफ़ा मिलने लगा। दो वर्ष बाद आपने एफ० ए० की परीक्षा भी उसी तरह पास की और १२ वज़ीफ़ा पाने लगे। के० डायटन साहब उस समय आगरा-कालेज के प्रिंसिपल थे। वे आपका विद्यानुराग देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुए और १८) माहवार स्वयं देने लगे। एफ० ए० परीक्षा पास करने के बाद परमानन्दजी के पिता का देहान्त हो गया और घर का साराभार आप ही पर आ पड़ा; क्योंकि आपके दो छोटे भाई, पण्डित देवीदयाल और पण्डित रामदयाल, उस समय बहुत छोटे थे। खैर किसी तरह, १८७५ मे, आपने बी० ए० की भी परीक्षा पास कर ली।

कालेज छोड़कर पण्डित परमानन्दजी ने सेट जान्स कालेज, आगरे, में नौकरी कर ली। वहाँ वे कोई एक साल रहे। फिर आप नवगॉव (बुँदेलखण्ड) के स्कूल मे हेडमास्टर होकर चले गये। परन्तु वहाँ कुछ झगड़ा हो जाने से आप चरखारी गये और कोई पाँच वर्ष तक वहाँ हेडमास्टर रहे। वहाँ आपके एक बड़े होनहार पुत्र का देहान्त हो गया। इससे वहाँ आप अधिक न रह सके। वहाँ से आप छत्रपुर गये और कुछ समय तक वहाँ भी रहे। उसके बाद आप सिंहार के पोलिटिकल एजंट के दफ़्तर में मीरमुंशी हो गये। इस पद पर आपने ९ वर्ष काम किया। वही रहकर आपने विशेष