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पण्डित परमानन्द चतुर्वेदी बी० ए०


विद्याध्ययन किया और अपने पुस्तकालय की जड़ डाली। वहाँ का काम आपको किसी कारण छोड़ना पड़ा। तब, १८९४ ईसवी मे, आप रियासत झालावाड़ मे महाराज-राना ज़ालिमसिंह के दीवान हुए।

१८९६ मे महाराज-राना ज़ालिमसिह गद्दो से उतारे गये, और आधी रियासत कोटे मे मिला दी गई। उस समय झालावाड़ की रियासत मे एक प्रकार का विप्लव सा हो रहा था। ऐसे समय मे आपने बड़ी ही योग्यता से काम किया। उसी समय आपके दूसरे लड़के का, जो बी० ए० की परीक्षा देनेवाला था, देहान्त हो गया। तथापि आप दृढ़तापूर्वक काम करते ही रहे। महाराज-राना ज़ालिमसिह के बाद, महाराज-राना भवानीसिहजी गद्दी पर बिठाये गये। तब आप बदस्तूर इनके भी दीवान बने रहे।

संवत् १९५६ के घोर दुर्भिक्ष मे दीवान परमानन्दजी ने बाहर से गल्ला मँगाकर झालावाड़ मे ऐसा अच्छा प्रबन्ध किया कि अकाल का बहुत ही कम कष्ट लोगो को सहना पडा। उस प्रबन्ध से प्रसन्न होकर गवर्नमेट ने आपको रायबहादुर बनाया। अपने समय मे आपने रियासत की तमाम अदालतों में हिन्दी का प्रचार किया, अँगरेज़ी सिक्का चलाया; सर्वसाधारण के लिए एक पुस्तकालय खोला; बड़े-बड़े तालाब खुदवाये, लड़कियों के मदरसे भी खोल दिये। साराश यह कि झालावाड़ की रियासत को आपने बहुत उन्नत कर दिया।