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पण्डित परमानन्द चतुर्वेदी, बी० ए०


शाकटायन का नाम अष्टाध्यायी मे आया है वे कोई दूसरे शाकटायन होंगे। x x x x कात्यायन के वार्तिकों का विषय इन शाकटायन के व्याकरण मे सूत्रबद्ध है। यदि इनको पाणिनि से प्राचीन मानें तो इसके साथ ही यह भी मानना पड़ेगा कि पाणिनि ने जानबूझकर अपने सूत्रो को नाक़िस बनाया। x x x x शाकटायन का पाणिनि से पहले होना तो निर्विवाद है। बहस तो सिर्फ़ इसमे है कि व्याकरण की जो पुस्तक हाल मे छपी है उसके कर्ता वही शाकटायन हैं या कोई दूसरे, जो पाणिनि के बाद हुए हैं। मेरा ख़याल तो यही है कि यह व्याकरण, जो इस समय छपा है, पाणिनि के क्या, बल्कि कात्यायन के भी बाद लिखा गया है। Encyclopædia Britannica के लेखक ने भी यही कहा है——

"This has been proved to be the production of a modern Jain writer"

हमने एक बार हरद्वार से आपको पत्र भेजा। उसके उत्तर मे आपने लिखा——

"आपकी चिट्ठी मे हरद्वार और गङ्गाजी का हाल पढ़कर मेघदूत का यह श्लोक याद आ गया——

तस्माद्गच्छेरनुकनखलं शैलराजावतीर्णां
जह्नो कन्यां सगरतनयस्वर्गसोपानपंक्तिम्।
गौरीयक्त भ्रु कुटिरचनां या विहस्येव फेनै.
शम्भोः केशग्रहणमकरोदिन्दुलग्नार्मिहस्ता।"