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कोविद-कीर्तन

व्याकरण और दर्शन-शास्त्रों के गहन से गहन विषयों के आप उत्तम ज्ञाता थे। साथ ही काव्यों के भी बड़े प्रेमी और रसिक थे। 'नैषधचरित' के सदृश क्लिष्ट काव्य के सर्ग के सर्ग आपको कण्ठाग्र थे। पर नाम आप न चाहते थे। गुमनाम रहना ही आपको पसन्द था। हमारे बहुत इसरार करने पर भी आपने अपने विषय मे एक सतर भी 'सरस्वती' मे लिखने की इजाज़त न दी। फ़ोटो तक उतारने से आपको नफ़रत थी। इसी से आपका कोई अच्छा सा फ़ोटो नहीं मिल सका।

चतुर्वेदीजी चाहते थे कि हर्बर्ट स्पेन्सर की तथा विलायत के अन्यान्य नामी ग्रन्थकारो की पुस्तकों का अनुवाद हिन्दी मे हो जाय। अनुवाद-प्रकाशन का सारा ख़र्च आप देने को तैयार थे। अनुवादकों को काफ़ी पुरस्कार भी आप देना चाहते थे। इस सम्बन्ध में हमने और उन्होंने भी बहुत चेष्टा की। पर हिन्दी के दुर्भाग्य से कोई सुयोग्य अनुवादक न मिला। हमारे कई एक मित्रों तक ने यह काम करने की अपेक्षा गप्पे हॉकते हुए समय नष्ट करना ही अधिक आवश्यक और अधिक उपयोगी व्यवसाय समझा।

पण्डित परमानन्दजी ने अपनी जन्मभूमि क़ायमगञ्ज मे एक बड़े ही महत्व का पुस्तकालय स्थापित किया है। उसमे संस्कृत, हिन्दी, अरबी, फ़ारसी, उर्दू, अँगरेज़ी और फ्रेन्च भाषाओं के १५००० ग्रन्थो का अपूर्व संग्रह है। ऐसा चुना हुआ