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पण्डित परमानन्द चतुर्वेदी, बी० ए०


संग्रह कलकत्ते की इम्पोरियल लाइब्रेरी के सिवा हमने अन्यत्र नही देखा। उसमे पुरातत्त्व-सम्बन्धी ग्रन्थों और सामयिक पुस्तकों का सङ्ग्रह बड़े ही महत्व का है। रायल एशियाटिक सोसायटी और एशियाटिक सोसायटी आव् बंगाल के पुराने से पुराने जरनल, सैकड़ो रुपये खर्च करके, आपने बड़े ही प्रयत्न से एकत्र किये। सेंटपिटर्सबर्ग ( वर्तमान पेट्रोग्राड ) मे प्रकाशित संस्कृत-कोश की कापियाँ अब नही मिलती। पर बहुत खर्च करके उसकी भी एक कापी, रूस से मॅगाकर, आपने अपने पुस्तकालय मे रक्खी। यह पुस्तकालय इन प्रान्तों मे एक अद्भुत वस्तु है। चतुर्वेदीजी ने अपनी कमाई का विशेषांश इसी मे लगा दिया। इसके लिए एक सुन्दर इमारत भी, अपने मकान ही के पास, आपने बनवा दी। उसी में यह पुस्तकालय है। अपने पिता के नाम पर इसका नाम आपने---"कन्हईलाल-पुस्तकालय"---रक्खा।

अन्य भाषाओं का उत्तम ज्ञान रखने पर भी पण्डितजी हिन्दी और हिन्दी की पुस्तकों के भी प्रेमी थे। आप सदा हिन्दी ही मे चिट्ठी लिखते थे। आपका हिन्दी-प्रेम ऐसा था कि कोई अच्छी पुस्तक हिन्दी मे निकली नही कि आपने झट उसे मँगाया नही। हमसे बहुधा आप इस विषय मे पूछ-पाछ किया करते थे और उपयोगी पुस्तकों का नाम मालूम होने पर तुरन्त उन्हें मँगा लेते थे। कोई महीना न जाता था जिसमें आप सौ-पचास रुपये की पुस्तके न मँगाते हों। कलकत्ते