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कोविद-कीर्तन


करके यही कहना पड़ता है कि वर्तमान काल में ऐसे विद्या- प्रेमी बहुत ही थोड़े निकलेगे जो विद्योपार्जन के लिए इतना परिश्रम करने के लिए तैयार हों। उनके शिक्षक काशिनाथ कोलम्बो मे रहते थे, पर सुमङ्गल का मठ कोलम्बो से आठ मील दूर था। परन्तु इस दूरी की कुछ भी परवा न करके वे रोज़ मठ से कोलम्बो पढ़ने जाते थे और सन्ध्या को अपने घर लौट जाते थे। इस प्रकार, संस्कृत पढ़ने के लिए, वर्षों तक, वे प्रतिदिन कोलम्बो से मठ तक, और मठ से कोलम्बो तक सोलह मील पैदल चलते थे।

शिक्षा समाप्त होने पर सुमङ्गलजी अपने गुरु की पाठशाला का काम देखने लगे। दो वर्ष के बाद वे अपने गाँव गये। वहाँ उन्होंने एक विद्यालय स्थापित किया और सात वर्ष तक उसमे पढ़ाते रहे। इसके अनन्तर वे लड्का के भिन्न-भिन्न नगरो में विद्यादान और उपदेश-कार्य करते फिरे। १८६६ ईसवी मे उनकी विद्वत्ता और शुद्ध-चरित्रता पर मोहित होकर सिहली बौद्धों ने उन्हें आदम-शिखर ( Adams Peak ) के प्रसिद्ध मठ का प्रधान महन्त निर्वाचित किया। तब से वे अपना सारा समय बौद्ध-धर्म तथा पूर्वी भाषाओ के प्रचार मे लगाने लगे।

१८७३ ईसवी मे उन्होने, कोलम्बो मे, विद्योदय नाम का एक बड़ा कालेज स्थापित किया। मृत्यु तक वे इस कालेज के अध्यक्ष रहे। उनका कालेज प्रसिद्ध भी खूब हुआ। भारत, ब्रह्म-देश, स्याम, कम्बोडिया, चीन और जापान तक के विद्यार्थी