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कोविद-कीर्तन


अच्छे ज्ञाता थे। अड़क्-गणित, रेखा-गणित, बीज-गणित, त्रिकोणमिति, माप-विद्या आदि मे उनकी यथेष्ट गति थी। आयुर्वेद का भी उन्हें ज्ञान था। शास्त्रार्थ मे तो वे एक ही थे। बड़े-बड़े विद्वानों को भी उनके सामने झुकना पड़ता था।

वे बड़े ही सरल-चित्त थे। जो उनसे मिलता उनके शील की प्रशंसा किये बिना न रहता। विदेशों मे भी वे बहुत प्रसिद्ध थे। योरप और अमेरिका के बड़े-बड़े विद्वान् उनसे मिलने के इच्छुक रहते। यद्यपि ज्योतिष के नवग्रह उन पर प्रसन्न न थे; तथापि सुमङ्गलजी सदा नीरोग रहे और चौरासी वर्ष की पक्की उम्र में परलोक के प्रवासी बने। केवल लड़्का-वालों ही को नहीं, किन्तु सारे बौद्ध-संसार को उनकी मृत्यु से बड़ी ही क्षति पहुँची। सुमङ्गलजी के मित्रों मे सर मानियर विलियम्स, अध्यापक रीज़ डेविड्स, कर्नल आलकाट आदि अनेक विद्वानों की गणना है। परलोकवासी स्याम-नरेश ने, अपनी योरप-यात्रा के समय, कोलम्बो में, सुमङ्गलजी को दोनो हाथ जोड़कर प्रणाम किया था। कलकत्ते के संस्कृत-कालेज के प्रधानाध्यापक आचार्य सतीशचन्द्र विद्याभूषण ने, कई महीने तक, सुमङ्गलजी के चरणो के पास बैठकर पाली भाषा और बौद्ध-ग्रन्थो का अवलोकन किया है। बनारस के जैन-यशोविजय-पाठशाला के भी कई छात्र सुमङ्गलजी के शिष्य हैं और उनसे उन्होंने बहुत कुछ सीखा है।

[फ़रवरी १९१५

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