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कोविद-कीर्तन

हृदय से इस प्रकार के विचार दूर कर देने चाहिए। किसी के जीवन-चरित को पढ़कर उससे लाभ उठाने का यत्न करना उचित है। यदि किसी बङ्गाली के, अथवा महाराष्ट्र के, अथवा मदरासी के, अथवा अँगरेज़ के अथवा और किसी अन्य जाति या देश के पुरुष से हमको अधिक उपदेश मिलने की आशा हो तो हमको उचित है कि हम आदरपूर्वक उसके चरित को पढ़ें, उस पर विचार करे और उससे लाभ उठावे। जिस प्रान्त में जो रहता है उस प्रान्त के सत्पुरुषों की चरितावली पढ़ने की ओर उसकी विशेष प्रवृत्ति होती है। ऐसा होना स्वाभाविक है और स्वदेश-प्रीति का लक्षण भी है। परन्तु उसके साथ ही दूसरी जाति अथवा दूसरे देश के सद्गुणी पुरुषों के जीवन की घटनाओं का वृत्तान्त सुनने और उनसे शिक्षा ग्रहण करने के लिए भी उसे सर्वदा सज्ज रहना चाहिए, क्योकि ऐसे चरितों के परिशीलन से निन्ध नाटक और असत्य-मूलक कहानियों की अपेक्षा, सहस्रगुणित लाभ होने की सम्भावना रहती है। लार्ड बेकन ने अपनी एक पुस्तक मेक्षजीवनचरित लिखे जाने की बड़ी आवश्यकता बतलाई है, और उसकी प्रशंसा में बहुत कुछ कहा है। उसके लेख का कुछ अंश हम नीचे अँगरेज़ी मे उद्धृत करते हैं––

But lives, if they be well-written, propounding to themselves a person to represent, in whom actions––both greater and smaller, public and