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कोविद-कीर्तन


ने इस भविष्यद्वाद पर ध्यान नहीं दिया; परन्तु पीछे से उसकी सत्यता के सम्बन्ध मे किसी को शङ्का न रही।

कठिन से कठिन परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना, बड़ी-बड़ी छात्र- वृत्तियॉ मिलना; सहस्रशः पुस्तकों को साद्यन्त पढ़ जाना और अन्त मे सेवा-वृत्ति स्वीकार करके आमरण लेखनी रगडते रहना कोई प्रशंसा की बात नहीं। इस प्रकार के अनेक पुरुषे हुए हैं, और होते रहेगे; परन्तु उनसे देश को क्या लाभ? धन्य वही पुरुष है जिस से जगत् का उपकार हो। यद्यपि विष्णु शास्त्री चाणाक्ष विद्यार्थी न थे और यद्यपि उन्होंने उस दशा से अनेक पुरस्कार प्राप्त करके नाम नहीं कमाया, तथापि उन्होंने पीछे से जो कुछ अपने देश और अपनी मातृभाषा के लिए किया उसके लिए उनके देशवासी चिरकाल तक उनके ऋणी रहेगे। हज़ार तीव्र और तेजस्वी विद्यार्थियों की अपेक्षा हम उनको अधिक महत्ता देते हैं।

विष्णु शास्त्री के पिता स्वयं विद्वान् और ग्रन्थकार थे। उनके यहाँ अनेक प्रकार के ग्रन्थ थे। यह भी हम कह आये हैं कि मराठी भाषा की पुस्तकों और उसके समाचार-पत्रो के रिपोर्टर भी वे थे। इसलिए कोई भी नवीन पुस्तक उनके यहाँ आये बिना न रहती थी। उनके घर पर विद्वान् लोग भी आया करते थे और अनेक विषयों पर उनके पिता के साथ वार्तालाप किया करते थे। उनके वार्तालाप को विष्णु शास्त्री एकान्त मे बैठकर सुनते और उस पर विचार किया करते थे।