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विष्णु शास्त्री चिपलूनकर


विविध विषय की पुस्तकों के अवलोकन और विद्वानों के वार्तालाप के श्रवण से उनका ज्ञान-भाण्डार प्रतिदिन बढतख गया; पुस्तकस्थ विषयों के अतिरिक्त देश की दशा की भी उनको बहुत कुछ ज्ञान हो गया। अतएव जब उन्होने बी० ए० पास करके कालेज छोड़ा तब और विद्यार्थियों को समान उनका ज्ञान आकुञ्चित न था। वे विशेष विद्वान, बुद्धिमान और ज्ञान-सम्पन्न होकर कालेज से निकले।

१८७२ ईसवी मे जब विष्णु शास्त्री ने कालेज छोड़ा तब उनका वय २२ वर्ष का था। वे उस समय हष्ट-पुष्ठ और नीरोग थे। उनके ओठ मोटे थे; उनकी दृष्टि स्तब्ध थी; उनकी भौंहे बड़ी और स्थिर थीं; उनका शरीर श्यामल और सुदृढ़ था। उनके रूप-रड्ग को देखकर यह कोई न कह सकता था कि वे इतने प्रसिद्ध लेखक, देश-भक्त और स्वातन्त्र्य-प्रिय होगे।

कालेज छोड़कर विष्णु शास्त्री ने बाबा गोखले की पाठशाला मे अध्यापक का काम स्वीकार किया, परन्तु कुछ ही दिनों के अनन्तर पूने के हाई स्कूल मे उनको तृतीय अध्यापक का पद मिल गया। इस प्रकार व्यवसाय-प्राप्ति होने पर उनको अपनी प्रिय मातृभाषा मराठी की सेवा करने का सुअवसर मिला। जब वे विद्यार्थी थे तभी से वे अपने पिता के सम्पादित "शालापत्रक" में लेख लिखा करते थे। जब से वे कालेज से बाहर निकले तब से उन्होने उस ओर विशेष ध्यान देना आरम्भ किया और क्रम-क्रम से "शालापत्रक" को अपने ही अधिकार मे कर