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कोविद-कीर्तन


में और "मराठा" नाम का समाचार-पत्र अँगरेज़ी में निकालना प्रारम्भ किया। इस काम के लिए एक छापेख़ाने की आवश्यकता हुई। इसलिए उन्होंने "आर्यभूषण" नाम का छापाख़ाना भी स्थापित किया। ये दोनों समाचार-पत्र दक्षिण के बड़े ही प्रभावशाली पत्र हैं और अभी तक बराबर अपने कर्तव्य को दक्षता से पालन करते जाते हैं। यह वही "केसरी" है जिसमे कई वर्ष हुए, एक कविता प्रकाशित करने के अपराध मे पण्डित बाल गङ्गाधर तिलक को विशेष कष्ट भोगना पड़ा। शास्त्रीजी ने "आर्यभूषण" छापेखाने के साथ ही "चित्रशाला" नामक एक और छापाख़ाना भी स्थापित किया। वह भी अभी तक विद्यमान है, और प्रतिदिन उन्नति के पद पर आरूढ़ होता जाता है। उससे अनेक प्रकार के प्राचीन और नवीन ऐतिहासिक चित्र निकलते हैं। विष्णु शास्त्री ने "काव्येतिहास-संग्रह" नामक एक मासिक-पुस्तक भी निकाली। इस संग्रह मे अनेक प्राचीन मराठी और संस्कृत के ग्रन्थ उन्होंने प्रकाशित किये। जितने कार्य शास्त्रीजी ने आरम्भ किये सबका यथासमय वे परिचालन और पर्यवेक्षण करते रहे। यह सब करके अपनी प्यारी "निबन्धमाला" को फिर भी वे नही भूले। उसको वे बराबर सात वर्ष तक बड़ी योग्यता से लिखते रहे। उनके लेख ऐसे मनोरम, सरस और रोचक होते थे कि सब लोग उनकी 'माला' का हृदय से आदर करते और उसे बड़े प्रेम से पढ़ते थे।