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विष्णु शास्त्री चिपलूनकर


प्रतिपक्षी भी उनके निबन्धो को पढ़कर उनके लेखन-कौशल की प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकते। जिनके मतों अथवा लेखों का खण्डन शास्त्रीजी ने किया है वे लोग स्वयं अपने ही मुख से उनके प्रबन्धों को पढ़ते समय अपने भ्रम को बहुधा स्वीकार करके, शास्त्रीजी के कोटिक्रम और विलक्षण चातुर्य पर मोहित हो रहे हैं। वे इतने सत्यप्रिय थे कि अपने विपक्षियों के आक्षेप-पूरित पत्रों को प्रसन्नतापूर्वक “निबन्धमाला" मे स्थान देकर उनका विचार करते थे और यदि कोई उनकी भूल को सिद्ध कर देता था तो उसे वे तुरन्त स्वीकार भी कर लेते थे। परन्तु उनके लेख प्रायः बड़े ही तीव्र होते थे। जिसके वे पीछे पड़ जाते थे उसके ऊपर ऐसे मर्म-कृन्तक वाक्य लिखते चले जाते थे कि उनको पढ़कर उनके लक्ष्यीकृत मनुष्य को समाज मे मुख दिखलाना कठिन हो जाता था। 'लोकहितवादी" नामक ग्रन्थकार पर जो उन्होंने बाण-वर्षा करनी आरम्भ की तो वर्षों तक उसकी झड़ी बाँध दी। वे प्राचीन मराठी कवियों के बड़े पृष्ठ-पोषक थे। प्रसिद्ध कवि मोरो पन्त पर उन्होंने अपनी "निबन्धमाला" में बहुत कुछ लिखा है, और अँगरेज़ी दृष्टि से उसकी कविता में दोष निकालनेवालो की खूब खबर ली है।

इतिहास, समालोचना, डाक्टर जान्सन, भाषा-पद्धति, भाषादूषण, गर्व, वक्तृत्व और भाषापरिज्ञान इत्यादि विषयों पर जो निबन्ध शास्त्रीजी ने "निबन्धमाला" मे लिखे हैं वे अवलोकन करने योग्य तो हैं ही; मनन करने योग्य भी हैं। वे जिस