कि महाधनुर्धारी दुष्यन्त के धनुष के समान शास्त्रीजी ने
अपनी लेखनी ही को शिथिल करने की सूचना इस अवतरण से नहीं दो थी; किन्तु उससे उन्होने अपने शरीर-बन्धनो को शिथिल करके सर्वदा के लिए विश्राम लेने की भी पहले ही से सूचना दे दी थी! विष्णु शास्त्री के कई निबन्धो का अनुवाद पण्डित गङ्गाप्रसाद अग्निहोत्री ने हिन्दी में किया है। क्या ही अच्छा हो यदि कोई शास्त्रीजी की समग्र निवन्धमाला का अनुवाद हिन्दी मे करके उनके प्रचण्ड पाण्डित्य से परिपूर्ण निबन्ध हिन्दी जाननेवालो के लिए भी सुलभ कर दे। परन्तु, करे कोई कैसे? हमारे प्रान्त के निवासियों को तो अपनी मातृ-भाषा का आदर अपमान-जनक सा जान पड़ता है। देश का दुर्भाग्य। और क्या ? निबन्धमाला का तो नहीं, परन्तु शास्त्रीजी के कविपञ्चक का अग्निहोत्रीजी ने पूरा अनुवाद कर डाला है। पॉच निबन्धों मे से कालिदास और भवभूति विषयक निबन्ध पुस्तकाकार छप भी गये हैं। बाण-विषयक निबन्ध
"सरस्वती" ही में प्रकाशित हो चुका है। शेष दो निबन्ध अभी
तक नही प्रकाशित हुए। इन निबन्धो को देखने से शास्त्रीजी की
रसिकता, मार्मिकता और मराठी के साथ-साथ संस्कृत की भी
विद्वत्ता का पूरा परिचय मिलता है। हे जगदीश्वर ! क्या हिन्दी
के साहित्य-जगत् मे भी कभी कोई विष्णु शास्त्री उत्पन्न होगा?
[जनवरी १९०३
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