पृष्ठ:कोविद-कीर्तन.djvu/४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२
कोविन्द-कीर्तन


के "हाईस्कूल" से संस्कृत के अध्यापक नियत हुए। वहाँ दो ही तीन महीने वे रहे होंगे कि प्रयाग में म्योर-कालेज की स्थापना हुई। तब वे म्योर-कालेज मे बदल आये और वहाँ संस्कृत के अध्यापक नियत हुए। इस प्रकार वे अपनी जन्म-भूमि प्रयाग में पहुँच गये। इस कालेज में वे दो ही वर्ष रहे । इतने में बनारस के क्वीन्स कालेज में अँगरेज़ी और संस्कृत-विभाग के अध्यापक की जगह ख़ाली हुई। उस पर गफ़ साहब थे पर वे म्योर-कालेज को बदल आये। इस जगह पर तब तक कोई देशी विद्वान् न नियत हुआ था । डाक्टर हाल, डाक्टर कर्न और ग्रिफ़िथ साहब, जितने इस जगह पर गफ़ साहब के पहले थे, सब विलायती थे और सभी अँगरेज़ो तथा संस्कृत के पारगामी पण्डित थे। परन्तु, इस समय, विद्या-विभाग के अधिकारियों को भट्टाचार्य महाशय से अधिक योग्य पुरुष न मिला। इसलिए वही इस सम्माननीय पद पर अधिष्ठित किये गये। जनवरी १८७४ से मार्च १८७५ तक आप इस पद पर रहे। जब डाक्टर थीबो विलायत से इस जगह के लिए विशेष रूप से मुक़र्रर होकर आ गये तब पण्डित आदित्यरामजी म्योर-कालेज में अपनी जगह पर लौट आये। १८७८ में वे वहाँ पर इतिहास और दर्शन-शास्त्र के अध्यापक हुए। १८८१ मे आप कुछ काल तक अँगरेज़ी के भी अध्यापक रहे। फिर आपको संस्कृत का अध्यापन-कार्य मिला। इसी पर आप अन्त तक बने रहे। १९०२ में, ५५ वर्ष के वयो-वृद्ध होकर, आपने पेंशन ले ली।