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कोविन्द-कीर्तन

की। कालेज के कई पुराने विद्यार्थी––माननीय पण्डित मदन-मोहन मालवीय, पण्डित सुन्दरलाल, तथा हाईकोर्ट के और कई वकील––इस अवसर पर उपस्थित थे। जब मालवीयजी बोलने को उठे तब उनका कण्ठ इतना भर आया कि उन्हें अश्रुपात होने लगा। कालेज के विद्यार्थियों ने, अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए, अपने व्यय से, पण्डितजी का एक फ़ोटो (Life-size bust) बलवाकर कालेज के पुस्तकालय में लगाने का तत्काल विचार किया। यह शायद अब तक लग भी गया हो[१]

शिक्षा-विभाग के डाइरेक्टर ग्रिफ़िथ और लिविस साहब ने आदित्यरामजी को बहुत अच्छे सरटीफ़िकट दिये हैं। पण्डितजी के गुणगान से वे साधन्त भरे हुए हैं। ग्रिफ़िथ साहब अपनी सरटीफ़िकट के अन्त में लिखते हैं––

His whole official career has been one of quiet, steady and successful labour, and I have a very high opinion of his character and merits as a servant of the State.

पण्डितजी हिन्दी-मिडिल के बहुत वर्षों तक परीक्षक रहे हैं। डाइरेक्टर साहब की भेजी हुई हिन्दी-पुस्तकों की आलोचनायें भी आप करते रहे हैं। इस सम्बन्ध मे आपने जो काम किये हैं उनकी भी ग्रिफ़िथ साहब ने बड़ी बडाई की है।


  1. यह लेख आक्टोबर १९०४ का लिखा हुआ है