आपकी इच्छा बंगला के "सोमप्रकाश" की तरह का एक हिन्दी-अखबार निकालने की थी; परन्तु सरकारी नौकरी स्वीकार करने पर उस इच्छा का कार्य में परिणत होना असम्भव हो गया । सरकारी नौकरी में भी आप कभी-कभी अँगरेज़ो में लेख लिख-
कर 'इंडियन मिरर और 'पायनियर' में प्रकाशित कराते रहे हैं।
१८८२ में, कुम्भ-मेला के विपय में, जो कई गुमनाम लेख 'पायनियर' में छपे थे, वे पण्डितजी ही की लेखनी से निकले थे।
१८९७ मे पण्ठितजी का ज्येष्ठ पुत्र, जिसकी उम्र २४ वर्ष की थी, परलोकगामी हो गया। यह बहुत बड़ा आघात आप पर हुआ। संसार मे सुख-द:ख का जोड़ा किसी का पीछा नहीं छोडता। उसने भट्टाचार्य महाशय को भी अपनी अनुल्लंघनीयता का परिचय दिया। परन्तु----
सम्पत्सु महतां चित्तं भवत्युत्पलकोमलम् ।
आपत्सु च महाशैलशिलासंघातर्कशम् ॥
अतएव कहने की आवश्यकता नहीं, इस दुःख को पण्डितजी ने सह डाला।
पण्डित आदित्यरामजी ने ऋजु-व्याकरण, गद्यपद्य-संग्रह और संस्कृत-शिक्षा नाम की पुस्तकें लिखी हैं। ये पुस्तकें स्कूलो में पढ़नेवाले लड़को के लिए आपने बनाई हैं। उनको पढ़कर हज़ारों छात्रों ने लाभ उठाया है और अब तक उठा रहे है।
पण्डितजी ने यद्यपि नौकरी छोड़ दी है, तथापि आप टेक्स्ट बुक कमिटी के मेम्बर बने हुए हैं। यह बहुत अच्छी बात