पृष्ठ:कोविद-कीर्तन.djvu/५५

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४---पणिडत मथुराप्रसाद मिश्र

सुखदेव मिश्र का जीवनचरित पढ़कर हमारे कई मित्रों ने हमसे कहा कि हम अपनी तरफ़ के और भी दो-एक पुण्य- शील पुरुषो का चरित प्रकाशित करे। उनकी इच्छा को पूर्ण करने के लिए, आज, हम अपने पडोसी पण्डित मथुराप्रसाद मिश्र का चरित, थोड़े में, सुनाते हैं। मिश्रजी ३२ वर्ष तक बनारस के क्वीन्स कालेज मे अध्यापक थे। इस प्रान्त के लिखे-पढ़े आदमियों मे शायद ही कोई ऐसे हों जो उनको न जानते हों। हमारे पास-पड़ोस मे तो, दूर-दूर तक के देहाती आदमी तक, "मथुरा मास्टर" को जानते हैं।

चित्र देखने से चरित की योग्यता बढ़ जाती है; उसमे कुछ और ही शोभा आ जाती है। उसे पढ़ने से कुछ और ही आनन्द मिलता है। परन्तु खेद है इसको मिश्रजी का चित्र नहीं मिल सका। बहुत प्रयत्न करने पर भी हमको कामयाबी नही हुई। सुनते हैं, उन्होने अपना चित्र तैयार ही नही कराया। यह कोई आश्चर्य की बात नही। जो सादेपन का अवतार था, अँगरेज़ी भाषा के प्रकाण्ड पण्डित होने पर भी जिसे अँगरेज़ी सभ्यता छू तक नहीं गई थी; अपने पूर्वजों की चाल-ढाल पर हिमालय के समान अचल रहने ही मे