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कोविद-कीर्तन


नाम वैद्यनाथ था। उनका विवाह उनाव के ज़िले मे, सुमेरपुर नामक गाँव में, हुआ था। यह गाँव भगवन्तनगर और हमीरपुर से थोड़ी ही दूर है। इसी योग से मिश्रजी के पिता, पण्डित सेवकराम, कानपुर का ज़िला छोड़कर उनाव के ज़िले में आये। वहाँ, हमीरपुर मे, २० जुलाई, १८२६ ईसवी को, पण्डित मथुराप्रसाद का जन्म हुआ।

पण्डित मथुराप्रसाद के पिता बनारस में नौकर थे। बनारस कालेज के अध्यक्ष, ग्रिफ़िथ साहब, के समय के पुराने चपरासियों का कथन है कि पण्डितजी के पिता बनारस मे किसी बहुत छोटे काम पर थे। परन्तु एक और मार्ग से जो बाते हमको मालूम हुई हैं उनसे जान पड़ता है कि वे किसी बङ्गाली राजा के यहाँ कारिन्दा थे। शायद पीछे से वे कारिन्दा हुए हों। कुछ भी हो, यह सिद्ध है कि वे बहुत अच्छी दशा में न थे।

पण्डितजी की उम्र पाँच वर्ष की थी जब वे अपने पिता के पास बनारस गये। वहाँ जाने के दो ही वर्ष बाद उनके बड़े भाई का शरीरपात हुआ और उनकी माता भी परलोक पधारी। इतनी छोटी अर्थात् सात वर्ष की उम्र मे मातृहीन होना बड़ी दुःसह विपत्ति है। पर ऐसी दुर्व्यवस्था होने पर भी, अपने पिता की प्रेरणा से, मिश्रजी ने विद्याभ्यास आरम्भ किया। कुछ समय के अनन्तर उन्होने गवर्नमेंट कालेज में प्रवेश किया। यद्यपि उनको कई तरह के सुभीते न थे, तथापि उन्होने सब