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कोविद-कीर्तन

कालेज की शिक्षा समाप्त होने पर पण्डितजी को गवर्नमेट से यञ्जिनियरी का काम सीखने के लिए ग़ाज़ीपुर भेजा। वहाँ एक यञ्जिनियर के पास रहकर उन्होने वह काम सीखा। वहाँ से लौट आने पर उन्होंने क़ानून का अभ्यास आरम्भ किया। इसी बीच से बनारस-कालेज में थर्ड (तीसरे) मास्टर की जगह ख़ाली हुई। कालेज की कमिटी पण्डितजी की योग्यता को अच्छी तरह जानती थी। इसलिए उसने उनको, ७५ रुपये महीने पर, परीक्षा के तौर पर, थर्ड मास्टर नियत किया। १८४७ ईसवी के एप्रिल में इस जगह पर उनकी नियुक्ति हुई। इससे स्पष्ट है कि यञ्जिनियरी और कानून का अभ्यास उन्होंने केवल वर्ष ही डेढ़ वर्ष किया। थर्ड मास्टरी पर उनकी परीक्षा बहुत दिनों तक होती रही। दिनों नहीं, वर्षों तक कहना चाहिए। सात वर्ष के बाद गवर्नमेट ने उनको इस पद पर दृढ़ रूप से नियुक्त किया। ३१ मई १८५४ ईसवी को वे पूरे थर्ड मास्टर हुए और उनका वेतन ७५ से १५० रुपये हो गया।

थर्ड मास्टरी पर काम करते मिश्रजी को तीन वर्ष भी न होने पाये थे कि १८५७ ईसवी के आरम्भ मे, इस प्रान्त के तत्कालीन लफ्टिनेट गवर्नर माननीय कालविन साहब के मन मे बनारस-कालेज के अध्यापकों की परीक्षा लेने की धुन समाई। सुनते हैं, यह बात मिश्रजी को बहुत नागवार हुई। यहाँ तक कि लफ्टिनेंट गवर्नर के सेक्रेटरी को उन्होंने दो-चार कड़ी कड़ी