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कोविद-कीर्तन


१८७८ ईसवी मे, उन्होंने २००) मासिक पर पशन ले ली। तब से उनका समय विशेष करके भजन-पूजन ही में व्यतीत होने लगा।

मिश्रजी समय के बड़े पाबन्द थे। सदैव ठीक समय पर कालेज जाते थे। समय पर क्या, उसके पहले ही वे पहुँच जाते थे। एक मिनट की देरी नहीं होती थी। उनके समय में लडके क्या मास्टर तक सब समय पर आते और अपना-अपना काम करते थे। जो लड़के देर से आते थे उन पर उनकी बड़ी तीव्र दृष्टि रहती थी। पण्डितजी के अधीन जो मास्टर थे वे तक उनसे डरते थे। स्कूल में उनका आतड्क सा जमा था। कोई लड़का या मास्टर सिर खोलकर क्लास में न बैठने पाता था। उनके समय मे जानदास नामक एक किरानी मास्टर थे। उनको पण्डितजी ने साफ़ा बाँधने के लिए मजबूर किया। जानदास ने ग्रिफ़िथ साहब से शिकायत की। साहब ने मिश्रजी के पक्ष में फ़ैसला किया। उन्होंने जान से कहा कि तुम्हारा धर्म क्रिश्चियन है; परन्तु तुम्हारा देश हिन्दुस्तान है। इसलिए तुमको हिन्दुस्तानी पहनाव पहनना चाहिए।

पण्डितजी के अनेक छात्र इस समय बड़े-बड़े पदों पर हैं। परलोकवासी सैयद महमूद ने बहुत दिनों तक उनसे पढ़ा था। उनके विद्यार्थियों मे से हमारे एक मित्र पण्डित युगलकिशोर वाजपेयी हैं। वे इस समय चरखारी-राज्य मे एक अच्छे