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कोविद-कीर्तन


क्वीन्स-कालेज में मास्टर थे। उनके किसी काम से अप्रसन्न होकर मिश्रजी ने प्रधान अध्यापक से उन पर दण्ड कराया। परन्तु पण्डित दीनदयालुजी ने साहब से मिलकर वह दण्ड माफ़ करा लिया। इस पर मिश्रजी बहुत नाराज़ हुए और इस घटना को वे जन्म भर नहीं भूले । उनकी मृत्यु के कुछ ही समय पहले, एक दिन, असिस्टंट इन्सपेक्टरी की दशा मे, पण्डित दीनदयालुजी ने मिश्रजी से अपने उस अपराध की क्षमा मॉगकर उनको सन्तुष्ट किया। इससे जान पड़ता है कि मिश्रजी कुछ क्रोधी भी थे।

पण्डित युगलकिशोर वाजपेयी चरखारी जाने के पहले एक बार पण्डित मथुराप्रसाद के पास गये और उनसे उन्होने कुछ उपदेश चाहा। आपने बहुत सूक्ष्म उपदेश दिया। आपने अँगरेज़ी के तीन शब्द कहे "satisfy your conscinence' अर्थात् अन्तःकरण को सन्तुष्ट करो। मतलब यह कि जो काम करने को तुम्हारा दिल गवाही दे उसी को करो। जिसे करने को दिल न गवाही दे उसे कभी मत करो। उपदेश बहुत अच्छा दिया।

पण्डितजी की अँगरेज़ी-विद्वत्ता बहुत बढ़ी-चढ़ी थी। वे बड़े ही अध्ययनशील थे। इसी से ग्रिफ़िथ साहब उन पर सबसे अधिक प्रसन्न थे। वे ऐसी अच्छी अँगरेज़ी बोलते थे---उनका उच्चारण ऐसा अच्छा था---कि यदि वे एक कमरे के किवाड़े बन्द करके भीतर से बोलें तो बाहर से सुननेवाले अँगरेज़ी