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पण्डित मथुराप्रसाद मिश्र


The character of the mass of the people is to be raised. They must be taught to read and write--must be made to learn the truths of the West--not in the language of those by whom they were ill-treated, abused and oppressed for successive generations, but in the genial speech of then ancestors, which is their invaluable inheritance National education must be conducted through the proper Vernacular, if we desire success

जो लोग अँगरेजी जानते हैं हम उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे इस कोश की भूमिका को अवश्य पढ़ें। इससे हिन्दी के विषय मे पण्डितजी की राय अच्छी तरह मालूम हो जायगी और उनकी अँगरेज़ी का नमूना भी देखने को मिल जायगा।

पण्डितजी की तत्त्वकौमुदी और उनका किया हुआ लघुकौमुदी का हिन्दी-अनुवाद भी हमने देखा है। दोनों बहुत अच्छी पुस्तके हैं। उनकी और पुस्तकें देखने का सौभाग्य हमे नही प्राप्त हुआ। अतः हम नही जानते कि बाह्य-प्रपञ्च-दर्पण, मन्त्रोपदेश-निर्णय और चाणक्य-नीति-दर्पण संस्कृत मे हैं या हिन्दी मे। ये पुस्तकें क्यों लिखी गईं, कितनी बड़ी है और कैसी हैं, यह भी हम नहीं जानते। पण्डितजी का वृत्तान्त बतलानेवाले ऐसे हैं कि शिव, शिव!

पण्डित मथुराप्रसादजी के पिता, पण्डित सेवकरामजी, पुत्र के पेशन लेने के कई वर्ष पीछे तक जीवित थे। १८८७