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कोविद-कीर्तन

पण्डितजी हिन्दी, उर्दू, संस्कृत, अँगरेज़ी और बँगला ये पॉच भाषायें जानते थे। संस्कृत आप अच्छी जानते थे। अच्छी यदि न जानते तो व्याकरण का हिन्दी-अनुवाद कैसे कर सकते? उनमे अँगरेज़ी की विद्वत्ता बहुत बड़ी थी। उसका उल्लेख ऊपर हो चुका है; आगे भी कुछ होगा। सुनते हैं, आप फ़ारसी भी जानते थे।

बनारस के बाबू श्यामाचरण, सब-जज, गवर्नमेट कालेज के प्रधानधर्माध्यक्ष पण्डित देवदत्त और पण्डित शिवनारायण मिश्र, पण्डित मथुराप्रसाद के आभ्यन्तरिक मित्र थे।

पण्डित मथुराप्रसाद बड़े संयमी, बड़े नियमनिष्ठ और बड़े ही सञ्चयशील थे। संयम का यह हाल था कि उनके गॉव बकसर मे लोगो ने उनको भोजन की सामग्री तौलकर खाते देखा है। नियम-निष्ठा उनकी ऐसी थी कि जो समय उन्होने मिलने का रक्खा था उसका अतिक्रम करके और किसी समय किसी से वे न मिलते थे, मिलनेवाला चाहे कैसा ही बड़ा आदमी क्यों न हो। सञ्चयशीलता भी उनकी बहुत ही बढ़ी-चढ़ी थी। उन्होंने बहुत धन इकट्ठा किया। सुनते हैं, वे अपना रुपया रियासतों को सूद पर देते थे। इस कारण बहुत सा रुपया डूब भी गया। उनके पुत्र ने कोई व्यापार किया था; उसमे भी शायद कुछ रुपया बरबाद गया। परन्तु मिश्रजी ने अपने रुपये का बहुत कुछ सद्व्यय भी किया। कुछ समय से वे अपने वंशज हिमकर के मिश्रों की असहाय विधवाओं को दो