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कोविद-कीर्तन


सिलसिला जारी किया हो; और उसी में लगे रहते हों। उनकी इच्छा थी कि अपने पिता के नाम से एक छोटी सी वैदिक पाठशाला बनारस मे जारी करें। शायद यह पाठशाला खुल भी गई है। दशाश्वमेध-घाट पर, ठीक गङ्गाजी के किनारे, पण्डित मथुराप्रसाद का बनाया हुआ एक मकान है। उसी मे शायद यह पाठशाला खुली है । क्या पढ़ाया जाता है, कितने अध्यापक हैं, कितने छात्र हैं, क्या नियम हैं, यह हमे मालूम नहीं।

दशाश्वमेध-घाटवाले मकान के सिवा बनारस मे पण्डितजी के और भी दो-एक मकान हैं। उनके गाँव बकसर में भी उनका एक मकान है। पण्डितजी के जीवन-काल मे बकसरवाला मकान बिलकुल कच्चा था और बुरी हालत में था। पर पण्डित शिवनन्दनप्रसाद ने उसका जीर्णोद्धार करके उसे अच्छा बना दिया है।

पण्डित शिवनन्दनप्रसाद के कोई सन्तति नहीं। इस कारण उन्होंने एक युवक को गोद लिया है। हम नहीं जानते कि सुयोग्य पण्डित शिवनन्दनप्रसाद ने अपने दत्तक पुत्र की शिक्षा-दीक्षा का क्या प्रबन्ध किया है। उनसे हमारी प्रार्थना है कि यह समय सिर्फ़ सामगायन का नहीं। कुछ और भी करना चाहिए, जिसमे पण्डित मथुराप्रसाद जैसे विख्यात विद्वान् के वंश मे विद्या का ह्रास न हो। मिश्रजी बहुत बड़े विद्वान थे। बड़े से बड़े आदमी तक उनको आदर की दृष्टि से देखते थे। प्रसिद्ध विद्वान् हाल साहब ने हिन्दी रीडर नाम की एक पुस्तक बना-