पृष्ठ:कोविद-कीर्तन.djvu/८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७५
पण्डित मथुराप्रसाद मिश्र

हमने "तरुणोपदेश" नामक एक पुस्तक लिखी है। पुस्तक बडी है। उसे लिखे गये कोई १० वर्ष हुए। किसी कारण से उसे हमने प्रकाशित नहीं किया। उसे हमने पण्डित मथुरा- प्रसादजी को दिखलाया। गीता और उस पुस्तक के विषय से बहुत विरोध था। तथापि आपने उसे कृपा-पूर्वक साद्यन्त देखा, और बनारस जाकर, उसकी समालोचना हमारे पास भेजी। उसमे उर्दू और अँगरेज़ी के जो शब्द आ गये थे उनको आपने पसन्द न किया। इस सम्बन्ध में आपने हमको एक पोस्टकार्ड भेजा। उसकी नक़ल हम नीचे देते हैं---

श्रीरामः

दशाश्वमेध-घाट बनारस ( जुलाई १८९५ ई०)

नमस्ते,

आपका दयापत्र और देवीरतुतिशतक आज पाकर मैं बहुत आनन्दित हुआ। मैं आपको धन्यवाद देता हूँ।

२---अपनी पुस्तक की भूमिका अर्थात् प्रस्तावना मे आपने नाम नीचे लिखा है इस निमित्त बहुवचन मेरी आँखों मे गड़ने लगा और जिन विदेशीय शब्दों के स्थान मे भाषा के शब्द नहीं हैं उनका व्यवहार तो अवश्य ही करना पड़ता है जैसे कोतवाल इन्सपेक्टर पुलीस रेलवे कमिश्नर मजिस्ट्रेट जज आदि परन्तु जहाँ भाषा भली भॉति काम दे सकती है वहाँ यावनी शब्दों को लाना मैं सर्वथा अनुचित समझता हूँ।