पृष्ठ:कोविद-कीर्तन.djvu/८७

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पण्डित कुन्दनलाल


साहब बहुत खुश हुए। तभी से ये साहब कृपामात्र हा गये और बहुत कुछ उनसे सहायता पाई।

स्कूल छोड़कर पण्डित कुन्दनलाल ने सरकारी नौकरी कर ली। जिस समय वे बुलन्दशहर में कलेक्टरी के हेडक्लार्क थे, ग्राउज़ साहब फ़तेहगढ़ की कलक्टरी पर बदल आये। वहाँ उन्होंने पण्डित कुन्दनलाल की भी बदली करा ली। तब से पण्डितजी का और साहब का, साहब के पेन्शन लेकर विलायत जाने तक, अखण्ड साथ रहा।

पण्डित कुन्दनलाल यद्यपि अँगरेज़ी के पदवीधर न थे तथापि अँगरेज़ी लिखने और बोलने मे उन्हें पदवीधरो से भी अधिक अभ्यास था। उनकी अँगरेज़ी की चिट्ठियों से उनकी योग्यता का अच्छा परिचय मिलता है। उनकी कई चिट्ठियाँ हमारे पास हैं। उनमे कितनी ही बातें उन्होंने बड़े महत्त्व की लिखी हैं। हिन्दी, अँगरेजी के सिवा पण्डितजी उर्दू भी जानते थे। चित्रकला मे तो आप बहुत ही व्युत्पन्न थे। चित्र खीचने मे वे इतने चतुर थे कि आदमी को सामने बिठाकर, बात की बात मे, उसका बहुत ही अच्छा चित्र खीच देते थे। कई नुमायशी मे उनके चित्रो की बड़ी तारीफ़ हुई थी और शायद उन्हे कोई पदक भी मिला था। "एक हिन्दू-विधवा" और "राजपूत ब्राइड" (नवविवाहिता राजपूत-वधू)--- उनके ये दो चित्र बहुत बढ़िया समझे गये थे। "मराठा" और "मराठिन" का भी एक जोड़ा चित्र उन्होंने अच्छा बनाया