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कोविद-कीर्तन

था। सब मिलाकर कोई छ:-सात चित्र उन्होंने बनाये थे; पर औरों के नाम हमें नहीं मालूम हुए। नव-विवाहिता राज-पूत-वधू के साथ उसके पति का भी चित्र था। पति लड़ाई से जाने के लिए तैयार था। जाने के पहले वह अपनी नवीना वधू से मिलने आया। उसे देखकर वधू ने कहा––

रणकूँ चाल्याँ साहिवाँ कोईं ढूँडत साथ।
थारे साथी तीन छे हिया, कटारी, हाथ॥

यही भाव चित्र में दिखाया गया था। चित्र के नीचे ऊपर का दोहा भी था। दोहे का अनुवाद भी अँगरेज़ी में इस प्रकार था––

Bound for fray, why halt my Lord?
What other' and need be?
Heart, right hand and trenchant sword,
Are thy sure champions three.

यह चित्र शिमला की चित्र-प्रर्दाशनी-कमिटी को बहुत पसन्द आया था। एक अँगरेज़-चित्रकार ने इसे इतना पसन्द किया कि अपना १५०) रुपये का एक चित्र देकर इसे बदल लिया।

"हिन्दू-विधवा" का चित्र कुन्दनलाल ने १८८८ ईसवी में बनाया था। उसका एक फ़ोटो फ़तेहगढ़ से श्रीबाबू हरप्रसादजी ने हमारे पास भेजा है। यह चित्र भी प्रदर्शिनी के अधिकारियों ने बहुत पसन्द किया था। कुछ लोगो का––ख़याल करके विदेशियों का–– ख़याल है कि भारतवर्ष की विधवा