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कोविद-कीर्तन


का। ये चित्र बड़े ही मनोहर थे। हमे याद पड़ता है, पण्डित कुन्दनलाल ने लिखा था कि ये गुच्छ एक हिन्दू-कुल- कामिनी के कर-कौशल के फल हैं। पण्डितजी इस पत्र मे चित्रकला और फ़ोटोग्राफ़ी-विषयक अनेक उपयोगी और सहज में बोधगम्य बातें लिखा करते थे। दो-एक दफ़े आपने अच्छे-अच्छे चित्र और "डिज़ाइन" बनाकर भेजनेवालो को इनाम देने की भी घोषणा प्रकाशित की थी।

"कवि व चित्रकार" के पहले अड्क के प्रारम्भ में एक संस्कृत-लावनी छपी थी। उसका शुरू इस प्रकार है----

प्रणमामि राधिकाकान्त पादयुगलन्ते

यद्विहरति रविजातीरविपुलविपिनान्ते।

इसके 'प्रणमामि' का 'प्र' बड़े आकार मे, बेल-बूटो के भीतर, बनाया गया था। पर किसी-किसी रसिक कवि को वह देख ही न पड़ा। इस पर उन्होंने सम्पादक से शिकायते की, जिन्हे पढ़कर पण्डित कुन्दनलाल को ललित-कलाओं की अधोगति पर बड़ा दुःख हुआ। इतना बड़ा और इतना साफ़ 'प्र' होने पर भी, सिर्फ़ बेलबूटेदार होने के कारण, लोगों की नज़र से ग़ायब हो गया!

"कवि व चित्रकार" से अच्छी-अच्छी कवितायें, कविता-विषयक प्रबन्ध, पुस्तकों की आलोचनायें और चित्रकला-विषयक लेख छपते थे। पूर्ति करने के लिए समस्याये भी दी जाती थीं। पहली समस्या इस विषय पर दी गई थी कि