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पण्डित कुन्दनलाल


किसने और किस उद्देश से जालियों का प्रचार किया। इस पर सैकड़ों पूर्तियाँ आईं। पर वे विशेष करके श्रृङ्गार ही रस की थीं। कुछ तो अश्लील तक थी। जालियों के उद्देश को भी कविजनो ने श्रृङ्गार ही मे डुबो दिया, यह देखकर पण्डित कुन्दनलाल को अफ़सोस हुआ। पर और रसों को भी कुछ पूर्तियाँ थीं। अच्छी-अच्छो पूर्तियों को पण्डितजी ने जाल-कौमुदी नामक पुस्तक मे प्रकाशित किया। इस पुस्तक मे जालियों की उत्पत्ति पर पण्डितजी ने एक लेख बड़े खोज से लिखा है। और कोई पौने तीन सौ तरह को जालियों के नमूने दिये है। इसमे जालियाँ बनाने की रीति आदि का भी वर्णन है। जाली-विषयक पूर्तियों की जाँच के लिए एक कमिटी बनी। उसके सभापति राजा लक्ष्मणसिहजी हुए। कमिटी ने ७ कवियों की पूर्तियों को अच्छा ठहराया। उनमे से तीन को पण्डित कुन्दनलाल ने दुशाला, घड़ी और डुपट्टा अपनी तरफ़ से पारितोषिक दिया, और शेष चार को राजा लक्ष्मणसिह ने अपनी तरफ से पगड़ी। पहला पुरस्कार, अर्थात् दुशाला, पण्डित जयदेवजी (अलवर) को मिला। पण्डित नाथूराम शङ्करजी ने पगड़ी पाई। चन्द्रकला बाई ( बूंदी ) ने डुपट्टा।

कोई दो साल तक "कवि व चित्रकार" निकला। प्रत्येक अङ्क मे एक न एक समस्यापूर्ति छपती रही। पूर्तियाँ अलग "पूर्तिपत्र" मे निकलती थीं। पूर्तिपत्र "कवि व चित्रकार" के अङ्क के साथ ही बॅटता था।