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पण्डित कुन्दनलाल


बड़ी ही हृदय-विदारिणी कविता मे पण्डितजी के असमय परलोकवास पर शोक प्रकट किया।

पण्डित कुन्दनलालजी ने, पहली स्त्री के मरने पर, दूसरा विवाह किया था। मरने के वर्ष ही डेढ़ वर्ष पहले यह विवाह हुआ था। अतएव यह और भी दुःख की बात हुई।

पण्डितजी थियासफ़िकल सोसायटी के सभासद थे और उसके तत्त्वो मे अच्छी पारदर्शिता रखते थे।

ग्राउज साहब ने तुलसीदास की रामायण का जो अनुवाद अंगरेजी मे किया है वह पहले ८) रुपये मे आता था। इससे उन्होने उसे, साहब की अनुमति से, खुद छपाया और सर्व-साधारण के सुभीते के लिए उसकी कीमत घटाकर सिर्फ ३) रुपये कर दी।

कुन्दनलालजी ने फतेहगढ़ मे एक सदुपकारिणी सभा भी स्थापित की थी। उसके सभापति आप ही थे। सज्जन और कुलीन स्त्री-पुरुष जो भूखे-प्यासे रहकर किसी तरह दिन काटते हैं, पर अप्रतिष्ठा के डर से किसी से कुछ मॉग नहीं सकते, उन्हें इस सभा से गुप्त सहायता मिलती थी। इस सभा ने कितने ही अनाथो और दीन-दुखियों का पालन किया। यह अब तक बनी हुई है और अब तक दो-चार दीनो को अन्न-वस्त्र दे रही है।

पण्डित कुन्दनलालजी बड़े उदार, बड़े स्वदेश भक्त और बड़े विद्या-प्रेमी थे। "कवि व चित्रकार" के निकालने मे उन्होने