पृष्ठ:कोविद-कीर्तन.djvu/९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९१
बौद्धचार्य शीलभद्र


हुआ है। उसे पढ़ने से शीलभद्र का संक्षिप्त वृत्तान्त मालूम हो सकता है।

शीलभद्र छठी शताब्दी में विद्यमान थे। नालन्द-विश्व-विद्यालय के अध्यक्ष थे। भारतवर्ष भर में उस समय कोई भी शास्त्रज्ञ विद्वान् उनका समकक्ष न था। ये वही शीलभद्र हैं जिनके पैरों पर प्रसिद्ध चीनी प्रवासी हेनसॉग ने अपना मस्तक रक्खा था। ये पूर्वी बङ्गाल के रहनेवाले थे। ढाका ज़िले के रामपाल गॉव में इनका जन्म हुआ था। यह गॉव उस समय समतट राज्य की राजधानी था। पालवंशी-राजाओं के पहले वहाँ ब्राह्मणवंशी राजाओं का राज्य था। शीलभद्र का जन्म राजवंश मे हुआ था। यदि राज्याधिकार की इच्छा से वे अपना देश न छोड़ते तो बहुत सम्भव था कि उन्हें राजासन प्राप्त हो जाता। परन्तु राज्यप्राप्ति की अपेक्षा विद्या ही को उन्होने श्रेष्ठ समझा। इसका फल यह हुआ कि बौद्ध-धर्म के विस्तृत साम्राज्य के वे सम्राट् हुए। उस समय नालन्द ही बौद्धो का सर्वश्रेष्ठ विद्यालय था। उसमें १५१० अध्यापक थे और कोई १० हज़ार विद्यार्थी विद्याध्ययन करते थे। इन सब अध्यापको के अध्यक्ष शीलभद्र थे।

जिस पद पर शीलभद्र अधिष्ठित थे उस पर उनके पहले कितने ही नामी-नामी पण्डित और महात्मा अधिष्ठित रह चुके थे। बौद्धो की माध्यमिक शाखा के आचार्य नागार्जुन इसी विश्वविद्यालय के आचार्य थे। यहीं उन्होने बौद्ध-धर्म के