पृष्ठ:क्वासि.pdf/१०९

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शासि केस के तोहि सूक करें हम । याको कौन उपाय, रे ? तू जागृति की दूती बनि क श्राई है उद्यान, अरी कलमु ही अभी निशा है, अबहि न भयो बिहान, रे, कच्ची नींद, अबहिं पौढे है हमरे प्राणाधार, रे, तू क्यों उ हे जगावन आई ? तू क्यों उठी पुकार, रे ? 8 हम चाहत है नीरवता, पें, प्रकृति बडी है ढीठ, रे, कोयरा और पपीहा के मिस पठात रहत बसीठ, रे, आज बदी है होड प्रकृति ने, हमरे सॉग, करि डाह, रे। पे, हम जीतगो निहच ही, पिय के हाथ निबाह, रे॥ तुम मति जगियो, पालम जागी, सोबहु पॉव पसार, र, गरिएका गकृति कहा करि लगी तुम सत् चित् अवतार, के दीय कारागार ारली दिनाङ्क १ दिसम्बर १६४३ तिरासी